पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/९१

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साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ वास्तव में हिंदी को 'विमापा' है, पर यह कहना सर्वथा अनुचित है कि उर्दू के आधार पर हिंदी खड़ी हुई है। "उर्दू कविता पहले स्वभावतः देश की काव्यमापा का सहारा लेकर उठी। फिर जय टाँगों में चल पाया, तय किनारे हो गई।" हिंदू कवियों ने,जो मुसलमान पात्रों से खड़ी बोली घुलवाई है, उससे यह निष्कर्ष न निकालना चाहिए कि वह मुसलमानी मापा थी। पानों की भाषा में मूलतः भेद करना इस देश की पुरानी परिपाटी थी और मुसलमानों की कोई ऐसी सर्वजन-बोध्य स्वकीय भापा नहीं थी जिसका कवि लोग प्रयोग करते। अतः उन्होंने उसके लिये उनके द्वारा अपनाई गई सड़ी बोली का प्रयोग किया; और विशेष प्रात्मीयता वोधन करने के लिये हिंदू पात्रों की भाषा व्रज या अपने प्रदेश की रखी। ___इसी प्रकार हिंदी गद्य के विषय में भी भ्रम फैल रहा है । लल्लूजी- लाल हिंदी गद्य के जन्मदाता माने जाते हैं। इस विषय में हम प्रसंगात् पहले लिख चुके हैं, पर यहां भी कुछ कहना चाहते हैं। अकयर बादशाह के यहां संवत् १६२० के लगभग गंग भाट था। उसने "चंद छंद घरनन की महिमा" खड़ी बोली के गद्य में लिखी है। उसकी भापा का नमूना देखिए-"इतना सुनके पातशाहजी श्री अकवरशाहजी श्राद सेर सोना नरहरदास चारन को दिया, इनके डेढ़ सेर सोना हो गया, रास यचना पूरन गया।" गंग भाट के पहले का कोई प्रामाणिक गद्य लेख न मिलने के कारण उसे खड़ी घोली का प्रथम गद्यलेखक मानना चाहिए । लएलूजीलाल हिंदी गद्य को आधुनिक रूप देनेवाले भी नहीं हैं। उनके और पहले का मुंशी सदासुख का किया हुश्रा भागवत का हिंदी अनुवाद "सुखसागर" वर्तमान है। उसका कुछ अंश नीचे उद्धृत करके हम यह दिखलाना चाहते हैं कि लल्लूजीलाल के पहले ही हिंदी गद्य श्रारंभ हो चुका था। "धन्य कहिए राजा पृथुजी को, नारायण के अवतार है, कि जिन्होंने पृथ्वी मंथन करके अन्न उपजाया, प्राम नगर बसाए, और किसी से सहायता न मांगी, कि किसी और से सहाय चाहेंगे तो उसे दुख होयगा। वह दुख श्रापको होय, इस हेत अपने पराक्रम से जो कुछ घन नाया सो किया। फिर कैसा कुछ किया कि इसका नाम पिरथी राजा पृथु के नाम से प्रसिद्ध है।"

  • जटमल की लिखी गोरा बादल की कथा भी हिंदी गद्य का पुराना नमूना

मानी जाती थी, पर अब यह सिद्ध हो गया है कि वह जटमल की लिसी नहीं है और इसका रचनाकाल १८०० ई. के लगभग है।