पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/९३

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साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ (२) उर्दू पर फारसी के व्याकरण का प्रभाव बहुत अधिकता से पड़ रहा है। उर्दू शब्दों के बहुवचन हिंदी के अनुसार न बनकर फारसी के अनुसार बन रहे हैं, जैसे कागज, कसबा या श्रमीर का बह- वचन कागजों, कसवों या अमीरों न होकर कागजात, कसवात, उमरा होता है, और ऐसे बहुवचनों का प्रयोग अधिकता से बढ़ रहा है। (३) संबंध कारक की विभक्ति के स्थान में 'ए' की इज़ाफत करके शब्दों का समस्त रूप बनाया जाता है, जैसे-सितारहिंद, दफ्तरे- फौजदारी, मालिके-मकान । इसी प्रकार करण और अपादान कारक की विभक्ति 'से' के स्थान में 'अज़' शब्द का प्रयोग होता है, जैसे- अज़खद, अज़ तरफ। अधिकरण कारक की विभक्ति में के स्थान में भी 'दर' का प्रयोग होता है; जैसे-दर असल, दर हकीकत। कहीं कहीं दर के स्थान में अरवी 'फिल' का भी प्रयोग होता है; जैसे- फ़िलहाल, फ़िलहकीकृत। (४) हिंदी और उर्दू की सबसे अधिक विभिन्नता वाक्य विन्यास में देख पड़ती है। हिंदी के वाक्यों में शब्दों का क्रम इस प्रकार होता है कि पहले कर्ता, फिर कर्म और अंत में क्रिया; पर उर्दू की प्रवृत्ति यह देख पड़ती है कि इस क्रम में उलट फेर हो। उर्दू में क्रिया कभी कभी कर्ता के पहले भी रख देते हैं; जैसे--"राजा इंदर का श्राना" न कहकर "श्राना राजा इंदर का" कहते हैं। इसी प्रकार यह न कहकर कि 'उसने एक नौकर से पूछा' यह कहेंगे-'एक नौकर से उसने पूछा। नीचे हम उदाहरणार्थ उर्दू के एक लेख का कुछ अंश उद्धत करते है, जिससे ये चारों घाते स्पष्टतया समझ में श्रा जायँगी। ।। ___"कस्वः निगोहा के जानिये दखिन एक मंदर महादेवजी का है, जिसको भौरेसर कहते हैं, और किनारे दरियाए सई के वाक्य है। और वहाँ पर हर दुःशंवा को मेला होता है, और अक्सर लोग हर रोज दरशन को बिला नागः जाया करते हैं, और जो मकसदे दिली रखते हैं, यह पूरा होता है । सुनने में पाया है कि एक वक्त औरंगज़ब वाहशाह भी उस मंदर पर तशरीफ़ लाए थे और उनकी मंशा थी कि इस मंदर को खुदवा- कर मूरत को निकलवा लेवें। और सदहा मज़दूर उस मूरत के निका- लने को मुस्तइद हुए, लेकिन मूरत की इंतहा न मश्रलूम हुई। तय बादशाह ने गुस्से में आकर इजाज़त दी कि इस मूरत को तोड़ डालो। तव मज़दूरों में तोड़ना शुरुष किया, और दो एक ज़र्व मूरत में लगाई, घल्कि कुछ शिकस्त भी हो गई, जिसका निशान आज तक भी मौजूद है, और कतरे खून भी मूरत से नमूद हुश्रा; लेकिन ऐसी कुदरत मूरत