पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/९४

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६४ हिंदी भाषा की जाहिर हुई और उसी मूरत के नीचे से हजारहा भौरे निकल पड़े और सब फ़ौजे बादशाह की मौरों से परेशान हुई। और यह खबर वाद- शाह को भी मश्रलूम हुई। तब बादशाह ने हुक्म दिया कि अच्छा, इस मुरत का नाम आज से भौरेसर हुआ और जिस तरह पर थी, उसी तरह से बंद कर दो। और खुद बादशाह ने मूरत मजकूर बंद कराने का इंतज़ाम कर दिया।" हिंदुस्तानी भाषा के विषय में इतना ही कहना है कि इसकी सृष्टि अँगरेजी राजनीति के कारण हुई है। हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं को मिलाकर, अर्थात् इन दोनों भापानओं के शब्दों में से जो शब्द बहुत अधिक प्रचलित हैं, उन्हें लेकर तथा हिंदी व्याकरण के सूत्र में पिरोकर इस मापा को यह रूप दिया जा रहा है। यह उद्योग कहाँ तक सफल होगा, इस विषय में भविष्यत् वाणी करना कठिन ही नहीं, अनुचित भी है। जिस प्रकार राजनीति के प्रभाव में पड़कर हिंदी के अवधी तथा ब्रज भापा रूप, जिनमें साहित्य की बहुमूल्य रचना हुई है, अब धीरे धीरे पीछे हटते जा रहे हैं और उनके स्थान में खड़ी घोली, जो किसी समय केवल बोलचाल की भापा थी और जिसमें कुछ भी साहित्य नहीं था, अव श्रागे घढ़ती श्रा रही है तथा उनका स्थान ग्रहण करती जा रही है, वैसे ही कोन कह सकता है कि दो एक शताब्दियों में भारतवर्ष की प्रधान घोलचाल तथा साहित्य की भाषा हिंदुस्तानी न हो जायगी, जिसमें केवल हिंदी उर्दू के शब्दों का ही मिश्रण न होगा, किंतु अँगरेजी भी अपनी छाप बनाए रहेगी? भारतीय भापात्रो के इतिहास से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि जय जय बोलचाल की भापा ने एक और साहित्यिक रूप धारण किया, तब तव दूसरी ओर बोलचाल के लिये भापा ने परिवर्तित होकर दूसरा नया रूप धारण किया और फिर उसके भी साहित्यिक रूप धारण करने पर वोलचाल की भापा तीसरे रूप में चल पड़ी। यह क्रम सहस्रों वर्षों से चला आ रहा है और कोई कारण नहीं देख पड़ता कि इसकी पुनरावृत्ति निरंतर न होती जाय।। हम यह देख चुके हैं कि हिंदी की तीन प्रधान उपमापाएँ है, अर्थात् अवधी, ब्रजमापा श्रार खड़ी बोली। राजस्थानी और धुंदेल- खंडी ब्रजभाषा के तथा उर्दू खड़ी बोली के निकट- तम है। इन तीनों उपभाषाओं के तारतम्य का सड़ा वाली का तारतम्य कुछ विवेचन नीचे दिया जाता है। ____ व्याकरण--खड़ी चोली के समान सकर्मक भूतकाल के कर्ता में ब्रजभाषा में भी 'ने' चिह होता है, चाहे काव्य में सूरदास श्रादि की