पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/९५

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साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ ६५ परंपरा के विचार से उसके नियम का पालन पूर्ण रूप से न किया जाय। यह 'ने' वास्तव में करण का चिह्न है जो हिंदी में गृहीत कर्मवाच्य रूप के कारण पाया है। हेमचंद्र के इस दोहे से इस बात का पता लग सकता है-जे महु दिएणा दिअहड़ा दइएँ पवसंतेण = जो मुझे दिए गए दिन प्रवास जाते हुए दयित (पति) से। इसी के अनुसार सकर्मक भूतकाल क्रिया के लिंग वचन भी कर्म के अनुसार होते हैं। पर अन्य पूरची भापाओं के समान अवधी में भी यह 'ने' नहीं है। अवधी के सकर्मक भूतकाल में जहाँ कृदंत से निकले हुए रूप लिए भी गए हैं, वहाँ भी न तो कर्त्ता में करण का स्मारक रूप 'मे' पाता है और न कर्म के अनुसार क्रिया के लिंग वचन बदलते हैं। वचन के संबंध में तो यह यात है कि कारक चिह्नग्राही रूप के अतिरिक्त संशा में बहुवचन का भिन्न रूप अवधी श्रादि पूरवी बोलियों में होता ही नहीं; जैसे 'घोड़ा' और 'सखी' का व्रजभाषा में बहुवचन 'घोड़े' और 'सखियाँ' होगा, पर अवधी में एकवचन का सा ही रूप रहेगा, केवल कारक चिह्न लगने पर 'घोड़न' और 'सखिन' हो जायगा। इस पर एक कहानी है। पूरव के एक शायर जवांदानी के पूरे दावे के साथ दिल्ली जा पहुँचे। वहाँ किसी फुजड़िन की टोकरी से एक मूली उठाकर पूछने लगे-"मूली कैसे दोगी?" चह वोली-"एक मूली का क्या दाम बताऊँ?" उन्होंने कहा-"एक ही नहीं, और लूँगा।" कुंजड़िन बोली-"तो फिर मूलियाँ कहिए।" अवधी में भविष्यत् की क्रिया केवल तिउंत ही है जिसमें लिंगभेद नहीं है; पर ब्रज में खड़ी बोली के समान 'गा' वाला कृदंत रूप भी है, जैसे आवैगो, जायगी इत्यादि। खड़ी बोली के समान व्रजभाषा की भी दीर्घात पदों की ओर (क्रियापदों को छोड़) प्रवृत्ति है। खड़ी बोली की श्राकारांत पुल्लिग संशाएँ, विशेषए और संबंध कारक के सर्वनाम रज में श्रीकारांत होते है जैसे-घोड़ो, फेरो, झगड़ो, ऐसो, जैसो, पैसो, कैसो, छोटो, बड़ो, खोटो, खरो, भलो, नीको, थोरो, गहरो, दूनो, चौगुनो, साँवरो, गोरो, प्यारो, ऊँचो, नीचो, श्रापनो, मेरो, तेरो, हमारी, तुम्हारो इत्यादि । इसी प्रकार आकारांत साधारण क्रियाएँ और भूतकालिक कृदंत भी ओका- रांत होते हैं; जैसे-श्रावनो, पाययो, करनो, देनो, देवो, दीवो, ठाढ़ी, बैठो, उठो, श्रायो, गयो, चल्यो, खायो इत्यादि। पर अवधी का लक्ष्यंत पदों की भोर कुछ झुकाव है, जिससे लिंग-भेदं का भी कुछ निराकरण हो जाता है। लिंग-भेद से अरुचि अवधी ही से कुछ कुछ प्रारंभ हो जाती है। अस, जस, तस, कस, छोट, बड़, खोट, सर, मल, नीक, थोर,