साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ ६७ हौवा, इत्यादि में। 'और' 'पेसा' 'भैस' आदि का उच्चारण पश्चिमी हिंदी में 'अवर', 'अयसा', 'मयस' से मिलता जुलता और पूरवी हिंदी में 'अउर', 'अइसा', 'भइस' से मिलता जुलता होगा। ' - ब्रज के उच्चारण के ढंग में कुछ और भी अपनी विशेपताएँ हैं। (कर्म के चिह्न 'को' का उच्चारण 'को' से मिलता जुलता करते हैं | माहिं, नाहि, याहि, पाहि, जाहि के अंत का 'ह' उच्चारण में घिस सा गया है, इससे इनका उच्चारण 'माय', 'नायँ', 'याय', 'पाय', 'जाय' के ऐसा होता. है। 'श्रावंगे' 'जावेंगे' का उच्चारण सुनने में 'श्रामैगे' 'जामगे' सा लगता है, पर लिखने में इनका अनुसरण करना ठीक नहीं होगा। ___ खड़ी बोली में काल घतानेवाले क्रियापद ('है' को छोड़) भूत और वर्तमान कालवाची धातुज कृदंत अर्थात् विशेपण ही हैं। इसी से उनमें लिंगभेद रहता है। जैसे श्राता है - श्राता हुश्रा है =सं० श्रायान् (श्रायांत), उपजता है = उपंजता हुश्रा है प्राकृत उपजंत=सं० उत्पद्यन्, (उत्पद्यंत ), करता है = करता हुआ है -प्रा० करत=सं० कुर्वन् (कुर्वत), आती है = श्राती हुई है -प्रा० श्रायंती=सं० पायांती, उपजती है = उप- जती हुई है =प्रा० उपजती=सं०० उत्पद्यती, करती है = करती हुई है = मा० करती=सं०* कुर्वती। इसी प्रकार वह गया =स गतः, उसने किया - तेन कृतम् इत्यादि हैं। पर व्रजभाषा और अवधी में वर्तमान और भविष्यत् के तिङत रूप भी हैं जिनमें लिंग-भेद नहीं है। ब्रज के वर्तमान में यह विशेषता है कि वोलचाल की भाषा में तिङत प्रथम पुरुप क्रियापद के आगे पुरुपवोधन के लिये 'है' 'हूँ' और 'हो' जोड़ दिए जाते हैं। जैसे-सं० चलति =प्रा० चलइ = प्रज० चलै, सं० उत्पद्यते- प्रा० उपजइ = व्रज० उपजे, सं० पठति प्रा० पढंति, अप० पढ़ व्रज० पढ़ें, उत्तम पुरुप सं० पठामः = प्रा० पठामो, अप० पढ़उँ-व्रज० पढ़ौ या पढ् । अब ब्रज में ये क्रियाएँ 'होना' के रूप लगाकर योली जाती हैं। जैसे- चले है, उपजै है, पढ़ें हैं, पढ़ौ हौ या पढ़ हूँ। इसी प्रकार मध्यम पुरुष "पढ़ी हो" होगा। धर्तमान के तिडंत रूप अवधी की बोलचाल से श्रय उठ गए हैं, पर कविता में घरायर आए हैं, जैसे-(क) पंगु चढ़े गिरिवर गहन, (ख) पिनु पद चले सुनै यिनु काना। भविष्यत् के तिडत रूप अवधी और ब्रज दोनों में एक ही है; जैसे-करिहै, चलिहै, होयहै = अप० करिहइ, चलिहइ, होइहइ प्रा० करिस्सइ, चलिस्सइ, होइस्सइ-सं० फरिष्यति, चलिष्यति, भविष्यति। अवधी में उच्चारण अपभ्रंश के अनुसार ही हैं, पर व्रज में 'इ' के स्थान पर 'य' वाली प्रवृत्ति के अनुसार करिहयकारिह, होयहय होयहै इत्यादि रुप हो जायेंगे। 'य' के पूर्व १३