पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१०६

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सप्तम प्रकरणा।


हिन्दी भाषा पर अन्य भाषाओं का प्रभाव

हिन्दी भाषा में सबसे अधिक संस्कृतके शब्द पाये जाते हैं । इस हिन्दी भाषा से मेरा प्रयोजन साहित्यिक हिन्दी भाषा से है । बोलचाल की हिन्दी में भी संस्कृतके शब्द हैं, परन्तु थोड़े उसमें तद्भव शब्दोंकी अधिकता है। हिन्दुओंकी बोलचालमें अब भी संस्कृतके शब्दोंके प्रयुक्त होनेका यह कारण है, कि विवाह यज्ञोपवीत आदि संस्कारोंके समय. कथा वार्ता ओर धर्मचर्चाओं में, व्याखानों और उपदेशों में, नाना प्रकार के पर्व और उत्सवों में, उनको पंडितों का साहाय्य ग्रहण करना पड़ता है। पण्डितों का भाषण अधिकतर संस्कृत शब्दों में होता है, वे लोग समस्त क्रियाओंको संस्कृत पुस्तकों द्वारा कराते हैं। अतएव उनके व्यवहार में भी संस्कृत शब्द आते रहते हैं । सुनते सुनते अनेक संस्कृत शब्द उनको याद हो जाते हैं, अतएव अवसर पर वे उनका प्रयोग भी करते हैं। जब पुलकित चित्त से भगवान का स्मरण करने केलिये गोस्वामी तुलसी दास के अथवा कविवर सूरदास के पदों को गाते हैं, अन्य भक्तों के भजनों को सुनते हैं उस समय भी अनेक संस्कृत शब्द उनकी जिह्वा पर आते रहते हैं, और उनके विषय में उनका ज्ञान बढ़ता रहता है । इसलिये हिन्दुओं की बोलचाल में संस्कृत शब्दों का होना स्वाभाविक है। तथापि यह स्वीकार करना पड़ेगा, कि इनकी संख्या अधिक नहीं है। जो सँस्कृत के शब्द अपने शुद्ध रूप में व्यवहृत होते हैं, उनको तत्सम कहते हैं, यथा हर्ष, शोक, कार्य, कर्म, व्यवहार, धर्म आदि। जो संस्कृत शब्द प्राकृत में होते हुए हिन्दी तक परिवर्तित रूप में पहुंचे हैं. उनको तद्भव कहते हैं । जैसे काम, कान, हाथ इत्यादि । हिन्दी भाषा इन तद्भव शब्दों से ही बनी है। तद्भव शब्द के लिये यह आवश्यक नहीं है, कि जिस रूप में वह प्राकृत में था उस रूपको बदल कर हिन्दी में आवे तभी तद्भव कहलावे यदि उसने अपना संस्कृत रूप बदल दिया है और प्राकृत रूप में ही हिन्दी में आया है तो भी तद्भव कहलावेगा। हस्त को लीजिये, जब तक इस शब्द