सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(९७)

है ٿ ۑ ت، زرخ، ق غ की ध्वनियों की रक्षा अ, रा, क, ख, जु, फु, लिख कर की जाती है। किन्तु कुछ भाषा मर्मज्ञ इस प्रणाली के प्रतिकूल हैं। उनका यह कथन है कि ग्राहक भाषा सदा ग्राह्य भाषाओं के शब्दों को अपने स्वाभाविक उच्चारणों के अनुकूल बना लेती है। ऐसी अवस्था में हिन्दी वर्गों पर बिन्दु लगा कर अरबी फ़ारसी के अक्षरों की ध्वनियों की रक्षा करना युक्तिमूलक नहीं। ऐसा करने से व्यर्थ वर्णमाला के वर्णों का विस्तार होता है। मेरा विचार है कि जब पठित समाज अरबी, फ़ारसी के विशेष अक्षरों का उच्चारण उसी रूप में करता है, जिस रूप में उनका उच्चारण उन भाषाओं में होता है तो इस प्रकार के उच्चारणों की रक्षा के लिये हिन्दी भाषा के अक्षरों में विशेष संकेतों के द्वारा कुछ परिवर्तन करने को जो प्रणाली गृहीत है वह सुरक्षित क्यों न रखी जावे। उर्दू कोर्ट की भाषा है, कचहरी दरबार में उसी का प्रचार है। सरकारी दफ़तरों में उसीसेही काम लिया जाता है। उर्दू की लिपि वही है, जो अरबी, फ़ारसीकी है, इसलिये अरबी फ़ारसी के शब्द उसमें शुद्ध रूपमें लिखे जाते हैं। शुद्ध रूपमें लिखे जाने के कारण उनका उच्चारण भी शुद्ध रूप में होता है। सरकारी कचहरियोंसे कुछ न कुछ सम्बन्ध प्रजा मात्रका होता है। मानकी रक्षा कौन नहीं करता। जब लोग देखते हैं कि अरबी फ़ारसी शब्दों का शुद्ध उच्चारण न करने से प्रतिष्ठा में बट्टा लगता है, शिष्ट प्रणाली में अन्तर पड़ता है अधिकारियों की दृष्टि से गिरना पड़ता है, तो उनको विवश हो कर अरबी फ़ारसी शब्दों के उच्चारण के समय उनकी विशेषताओं की रक्षा करनी पड़ती है। पठित समाज अवश्य ऐसा करता है, गँवार और मूर्खों की बात दूसरी है। यदि आवश्यकतायें अथवा कारण विशेष हमको अरबी और फ़ारसी शब्दों का शुद्धोच्चारण करने के लिये विवश करते हैं। और सभा, समाज, पारस्परिक व्यवहार, एवं कुछ अंतर्जातीय लोगों से सम्मिलन के अवसरों पर हमको शुद्ध उर्दू बोलने की आवश्यकता होती है, तो उसके फ़ारसी अरबी के विशेष शब्दों को हिन्दी अक्षरों में शुद्ध लिखने की प्रणाली प्रचलित क्यों न रक्खी जावे। दूसरी बात यह कि पूर्णता लाभके लिये जैसे भाषा की व्यापक और पूर्ण होने की आवश्यकता है, वैसे ही