पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/११३

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फारसीदां, पे' वो, चे, वो, ज़, वो, गाफ़। इनमें से ݣݣݜ,ڱګتيذ ݺ ݷ के स्थान पर हिन्दी में, अ, ब, प, ज, च, द, र, श, क, ग, ल, म, न, व, य, लिखा जाता है। दोनों भाषाओं के उक्त अक्षरों का उच्चारण कुछ भिन्न ज्ञात होता है. परन्तु प्रयोग में कोई भिन्नता नहीं है, इसलिये फ़ारसी के इन तेरह अक्षरों के स्थान पर हिन्दी अक्षरों का व्यवहार बिना किसी परिवर्तन के होता है। फारसी के शेष अक्षरों में से कुछ अक्षर तो ऐसे हैं जिनमें से दो या तीन अक्षरों के स्थान पर हिन्दी का एक अक्षर काम देता है और कुछ ऐसे हैं जिनके लिये समान उच्चरित अक्षरों के नीचे बिन्दु लगाना पड़ता है, नीचे ऐसे अक्षर लिखे जाते हैं।

(१) ڏقغظغعد के स्थान पर क ख अग और फ लिखा जाता है जैसे لسصش का क़ौम, का खरबूज़ा ضشض का अनैक ݑځڂٻٻ का गायब और ڙخزدرص का फ़जूल आदि किन्तु, के स्थान पर प्रायः अ ही लिखने की प्रणाली है। कारण इस का यह है कि जैन का उच्चारण अधिकतर पठित समाज भी अ कासाही करता है, इसका प्रमाण यह है कि मअल्लूम के स्थान पर मालूम ही लिखा जाता है। ىوهرشظ को आम नहीं आम ही कहते और लिखते हैं।

(२) هو और ४ दोनों के स्थान पर हिन्दी का ह ही काम देता, है जैसे بؤجت का हाल और हवा का हवा। ت और ط का काम हिन्दी का त देता है। ذمط और صص तौर और तीर ही लिखे जाते हैं।

(३) شسش और ههنص हिन्दी में स बन जाते हैं। जैसे تللت का सूरत بذذس का सवाब और ,صر का सर इत्यादि।

طشضس इन पांचों अक्षरों का उच्चारण प्रायः ज़ के समान है, इसलिये हिन्दी में इनके स्थान पर ज़ ही लिखा जाता है जसे زسد का ज़ैल قلل का ज़ोर, صسذ का ज़ामिन سصسظ का ज़ाहिर इत्यादि।

फारसी में एक हे मुख़फ़ी कहा जाता है, ىس— رشض—ظح—ۑۆ के अन्त में जो हे है वही हे मुखफ़ी है। हिन्दी में यह आ हो जाता है जैसे गेज़ा कूज़ा सबज़ा, जग आदि। कुछ लोगों ने इस हे के स्थान पर विसर्ग लिखना प्रारम्भ किया था अब भी कोई कोई इसी प्रकार से लिखना