पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/११५

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यह कि फ़लक और मलक ने कहा मैंने नहीं कहा १! कहाँ यह भाव और कहां यह कि एक तिहाई से अधिक अरबी शब्द फारसी में दाखिल हो गये, तो भी फ़ारसी का नाम फारसी ही रहा। उर्दू भाषा की प्रकृति आज भी हिन्दी है, व्याकरण उसका आज भी हिन्दी प्रणाली में ढला हुआ है, उसमें जो फारसी मुहावरे दाखिल हुए हैं, वे सब हिन्दी रंग में रंगे हैं। फारसी के अनेक शब्द हिन्दी के रूप में आकर उर्दू की क्रिया बन गये हैं। एक बचन बहुधा हिन्दी रूप में बहुवचन होते हैं, फिर उर्दू हिन्दी क्यों नहीं है? यदि कहा जावे फारसी, अरबी, और संस्कृत शब्दों के न्यूनाधिक्य से हो उर्दू हिन्दी का भेद स्थापित होता है, तो यह भी नहीं स्वीकार किया जा सकता, क्यों कि अनेक उर्दू शायरों का बिल्कुल हिन्दी से लबरेज़ शेर उर्दू माना जाता है, और अनेक हिन्दी कवियों का फ़ारसी और अरबी से लबालब भरा पद्य हिन्दी कहा जाता है-कुछ प्रमाण लीजिये-

{{Block center|<poem>|{{तुम मेरे पास होते हो गोया। जब कोई दूसरा नहीं होता ॥}}

(मोमिन )

{{Block center|<poem>|{{लोग घबरा के यह कहते हैं कि मर जायेंगे। मर के गर चैन न पाया तो किधर जायेंगे।}}

(जौक़ )

{{Block center|<poem>|{{लटों में कभी दिल को लटका दिया । कभी साथ बालों के झटका दिया।}}

(मीरहसन)

हिन्दी भरी कविता आपने उर्दू की देख ली। अब अरबी फ़ारसी भरी हिन्दी की कविता देखिये-

१ मुसल्मानों का धार्मिक विश्वास है कि फलक (आकाश) और मलक (देवता) की भाषा अरबी है।