पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१५२

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आगे बाणिहि संचरए सँघपति सहु देसल।
बुद्धिवंत बहु पुण्यवंत पर कमिहिं सुनिश्चल।

ग्रन्थ, थूलि भद्र फागु, कवि जिन पद्मसूरि (रचना काल १३२० ई॰)

३––अह सोहग सुन्दर रूपवंत गुण मणिभण्डारो।
कंचण जिमि झलकत कंति संजम सिरिहारो।
थूलिभद्र मणिराव जाम महि अली बुहन्तउ।
नयर राम पाउलिय मांहि पहुँतउ बिहरतउ।

ग्रन्थ विजयपाल रासो (रचना काल १३२५ ई॰) नल्लसिंह भाट सिरोहिया।

४––दश शत वर्ष निराण मास फागुन गुरु ग्यारसि।
पाय-सिद्ध बरदान तेग जद्दव कर धारसि।
जीतिसर्व तुरकान बलख खुरसान सुगजनी।
रूम स्याम अस्फहाँ फ्रंग हवमान सु भजनी।
ईराण तोरि तृराण असि खौसिर बंगखँधारसब।
बलवंड पिंड हिंदुवान हद चढिव बोर विजपालसब।

जिस क्रम में कविताओं का उद्धरण किया गया है उसके देखने से ज्ञात हो जायगा कि उत्तरोत्तर एक से दूसरो कविता की भाषा का अधिकतर परिमार्जित रूप है। शार्ङ्गधर का रचना में अधिक मात्रा में अपभ्रंश शब्द हैं। ऐसे शब्द चिन्हित कर दिये गये हैं। उसके बाद की नम्बर २ और ३ की रचनाओं में इने गिने शब्द अपभ्रंश के हैं, उनमें हिन्दी शब्द-हो अधिकतर दिखलाई देते हैं। जिससे पता चलता है कि इन शताब्दी की आदि की रचनाओं पर तो अपभ्रंश शब्दों का अवश्य अधिक प्रभाव है। परन्तु बाद की रचनाओं में उसका प्रभाव उत्तरोत्तर कम होता गया है। यहां तक कि अमीर खुसरो की रचनाएं उससे सर्वथा मुक्त दिखलाई पड़ती हैं।

अमीर खुसरो इस शताब्दीका सर्वप्रधान कवि है। यह अनेक भाषाओं