पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१४२)

वे शुद्ध ब्रज भाषा में लिखे गए हैं। केवल 'नैना' का 'ना' दीर्घ कर दिया गया है। किन्तु यह अपभ्रंश और ब्रज भाषा के नियमानुकूल है। शेष पद्यों की भाषा खड़ी हिन्दी की बोलचाल में है। केवल 'रतियां', 'बतियां', 'पतियां' 'घतियां का प्रयोग ही ऐसा है जो ब्रजभाषा का कहा जा सकता है। उनके इस प्रकार के मिश्रण के सम्बन्ध में मैं अपनी सम्मति प्रकट कर चुका हूं। हाँ, मात्रिक छन्दों के नियमों की दृष्टि से ये खड़ी बोली के पद्य निर्दोष नहीं हैं। अनेक स्थानों पर लघु के स्थान पर गुरु लिखा गया है यद्यपि कि वहां लघु लिखना चाहिये था। जैसे सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अँधेरी रतियां' इस पद्यमें 'जो' के स्थान पर 'जु' तो के स्थान पर 'त', कैसे के स्थान पर 'कैस' और अँधेरी के स्थान पर 'अँधेरे', पढ़नेसेही छन्द की गति निर्दोष रहेगी। ऐसेही हिन्दी भाषाके शेष पद्यों की पंक्तियां सदोष हैं, परन्तु जब हम वर्त्तमानकाल के उन्नति-प्राप्त उर्दू पद्यों को देखते हैं तो उनके इस प्रकार के पद्य-गत हिन्दी भाषा के शब्द-विन्यास को दोषावह नहीं समझते, क्योंकि अरबी वहोंमें हिन्दी शब्दों का व्यवहार प्रायः विवश होकर इसी रूप में करना पड़ता है। वरना कहना यह पड़ता है कि उर्दू कविता के प्रारम्भ होनेसे २०० वर्ष पहलही इस प्रणालीका आविर्भाव कर उन्होंने उर्दू संसार के कवियों को उस मार्गका प्रदार्शन किया जिसपर चलकर हा आज उर्दू पद्य-लाहित्य इतना समुन्नत है। इस दृष्टि से उनकी गृहीत प्रणाली एक प्रकार से अनिन्दनीय ही ज्ञात होती है, निन्दनीय नहीं। खुसरो ने हिन्दुस्तानी भावों का चित्रण करते हुए कुछ ऐसे गीत भी लिखे हैं जो बहुत ही स्वाभाविक हैं। उनमें से एकदेखिये:—

॥सावन का गीत॥

अम्मा मेरे बाबा को भेजो जो कि सावन आया।
बेटी तेरा बाबा तो वुड्ढा री कि सावन आया।
अम्मा मेरे भाई को भेजो जो कि सावन आया।
बेटी तेरा भाई तो बालारी कि सावन आया।