पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२०२

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( १८८ ) ५-धूप, दीप, घृत साजि आरती वारने जाऊँ कमलापती। मंगला हरि मंगला नित मंगल राजा राम राय को । उत्तम दियरा निरमल बाती तुहीं निरंजन कमला पाती। राम भगति रामानन्दु जानै पूरन परमानंद बखाने । मदन मूरति भय तारि गुविन्दे । सैन भणय भजु परमानन्दे। सैन पीपा गागरोनगढ़ के एक गजा थे। वे भो स्वामीरामानंद के शिष्य थे। एक पद उनका भी देखिये:१-काया देवा काया देवल काया जंगम जाती। काया धूप दीप नैवेदा काया पूजौं पाती । काया बहु खंड खोजते नवनिद्वीपाई । ना कछु आइयो ना कछु जाइयो राम की दोहाई । जो ब्रह्मण्डे सोई पिंडे जो खोजे सो पावै । पीपा प्रणवै परमतत्तु है सतगुरु होय लखावै । गोविंद गोविंद गोविंद सँग नामदेव मन लीना। आठ दाम को छीपरो होइयो लाखीना। वुनना तनना त्याग के प्रीति चरन कबीरा। नीचु कुला जोलाहरा भयो गुनिय गहीरा। रविदास ढोवन्ता ढोर नित जिन त्यागी माया। परगट होआ साध सँग हरि दरसन पाया। सैनु नाई बुतकारिया ओहु घर घर सुनिया। हिरदै बसिया पारब्रह्म भक्ता महिं गनिया। यहि विधि मुनिकै जाटरो उठि भक्ती लागा। मिले प्रतक्ख गुसाइयाँ धन्ना बड़ भागा । पीपा धन्ना