पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२०४

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( १९० ) विरुद्ध कबीर साहब उनको उन शब्दों में स्मरण करते हैं जो भद्रता की सोमा को भी उल्लंघन कर जाते हैं। अतएव यह समझना कि गुरु नानकदेव उसी पथ के पथिक थे जिस पथके पथिक कबीर साहब थे बहुत बड़ी भ्रान्ति है। गुरु नानकदेव का आविर्भाव यदि उस समय पंजाब प्रान्त में न होता तो उस प्रान्त से हिन्दू धर्मका विलोप-साधन पोरों के लिये बहुत आसान हो जाता। गुरु नानकदेव की अधिकांश रचनायें पंजाबी में हो हैं । परन्तु प्रायः सब हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने गुरु नानकदेव को हिन्दी का कवि माना है। कारण इसका यह है कि उनके बाद उनकी गद्दी पर नौ गुरु और बैठे। इनमें से पांच गुरुओं ने जितनी रचनायें की हैं उन सब लोगों ने भी अपनी पदावली में नानक नाम ही दिया है। इस लिये भ्रान्ति से अन्य गुरुओं की रचनाओं को भी गुरु नानक की रचना मान ली गयी है । गुरु तेगबहादुर नवें गुरु थे वे सत्रहवीं ई० शताब्दी में हुये हैं। उनकी रचनायें उस समय की हिन्दो में हुई हैं । वेही अधिक प्रचलित भी हैं। इसी लिये उनकी रचनाओं को गुरु नानकदेव की( १९० ) विरुद्ध कबीर साहब उनको उन शब्दों में स्मरण करते हैं जो भद्रता की सोमा को भी उल्लंघन कर जाते हैं। अतएव यह समझना कि गुरु नानकदेव उसी पथ के पथिक थे जिस पथके पथिक कबीर साहब थे बहुत बड़ी भ्रान्ति है। गुरु नानकदेव का आविर्भाव यदि उस समय पंजाब प्रान्त में न होता तो उस प्रान्त से हिन्दू धर्मका विलोप-साधन पोरों के लिये बहुत आसान हो जाता। गुरु नानकदेव की अधिकांश रचनायें पंजाबी में हो हैं । परन्तु प्रायः सब हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने गुरु नानकदेव को हिन्दी का कवि माना है। कारण इसका यह है कि उनके बाद उनकी गद्दी पर नौ गुरु और बेटे। इनमें से पांच गुरुओं ने जितनी रचनायें की हैं उन सब लोगों ने भी अपनी पदावली में नानक नाम ही दिया है। इस लिये भ्रान्ति से अन्य गुरुओं की रचनाओं को भी गुरु नानक की रचना मान ली गयी है । गुरु तेगबहादुर नवें गुरु थे वे सत्रहवीं ई० शताब्दी में हुये हैं। उनकी रचनायें उस समय की हिन्दो में हुई हैं । वेही अधिक प्रचलित भी हैं। इसी लिये उनकी रचनाओं को गुरु नानकदेव की रचना मान ली गयी है. और इसी से उस भ्रान्ति की उत्पत्ति हुई है जो उनको हिन्दी भाषा का कवि बनाती है। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। मैं यह स्वीकार करूंगा कि गुरु नानकदेव के कुछ पद्य अवश्य ऐसी भोपा में लिखे गये हैं जो पन्द्रहवीं शताब्दी की हिन्दी से सादृश्य रखते हैं। परन्तु उनकी संख्या बहुत थोड़ी है, और उनमें भी पंजाबीपन का रंग कुछ न कुछ पाया जाता है। मैं बिषय को स्पष्ट करने के लिये उनका एक पद्य पंजाबी भाषा का और दूसरा हिन्दी भाषा का नीचे लिखता हूं:१-पवणु गुरुपाणी पिता माता धरति महत्तु । दिवस रात दुइदाई दाया खेलै सकल जगत्तु । चगियाइयां बुरियाइयां वाचै धरमु हदूरि । करनी आपो आपणी के नेड़े के दूरि । जिन्नी नाम धेयाइया गये मसक्कति घालि । नानक ते मुख उजले केती छुट्टी नालि ।

रचना मान ली गयी है, और इसी से उस भ्रान्ति

की उत्पत्ति हुई है जो उनको हिन्दी भाषा का कवि बनाती है। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। मैं यह स्वीकार करूंगा कि गुरु नानकदेव के कुछ पद्य अवश्य ऐसी भोपा में लिखे गये हैं जो पन्द्रहवीं शताब्दी की हिन्दी से सादृश्य रखते हैं। परन्तु उनकी संख्या बहुत थोड़ी है, और उनमें भी पंजाबीपन का रंग कुछ न कुछ पाया जाता है। मैं बिषय को स्पष्ट करने के लिये उनका एक पद्य पंजाबी भाषा का और दूसरा हिन्दी भाषा का नीचे लिखता हूं:- १-पवणु गुरुपाणी पिता माता धरति महत्तु । दिवस रात दुइदाई दाया खेलै सकल जगत्तु । चगियाइयां बुरियाइयां वाचै धरमु हदूरि । करनी आपो आपणी के नेड़े के दूरि । जिन्नी नाम धेयाइया गये मसक्कति घालि । नानक ते मुख उजले केती छुट्टी नालि ।