पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२१२

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सुणौ कथा रसलीन विलास।
योगी मरण (अउर) बनवास।
पदमावती बहुत दुख सहई।
मेलो करि कवि दामो कहई।

इस पद्यकी भाषा प्राञ्जल है और वैसी ही है जैसा स्वरूप पन्द्रहवीं शताब्दी में हिन्दी को प्राप्त हुआ था। केवल 'सुणौ' शब्द राजस्थानी का है जो प्रान्तिक रचना होने के कारण उसमें आ गया।



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सोलहवीं ई० शताब्दी को हम हिन्दी भाषा का स्वर्णयुग कह सकते हैं। इसी शताब्दी के आरम्भ में मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने प्रसिद्ध 'पदमावत' नामक ग्रन्थ की रचना की जो अवधी भाषा का आदिम ग्रंथ है। · इसी शताब्दी में हिन्दी-साहित्य गगन के उस सूर्य और चन्द्रमा का उदय हुआ, जिनकी आभा से वह आज तक उद्भासित है। आचार्य केशव, जो हिन्दी साहित्य के भाम और मम्मट हैं. उनका आविर्भाव भी इसी शताब्दी में हुआ और अकबर के राजत्व का वह उल्लेखनीय समय भी जो मुसल्मान साम्राज्य का उच्चतम काल कहा जाता है. इस शताब्दी का ही अधिकांश भाग है। इस शताब्दी में अवधी और ब्रज भाषा का जैसा शृंगार हुआ फिर कभी वैसा गौरव उसको नहीं प्राप्त हुआ। इस शताब्दी के हिन्दी साहित्य के विकाश पर प्रकाश डालने के पहले मुझको एक बहुत बड़े धार्मिक परिवर्तन का वर्णन कर देना आवश्यक ज्ञात होता है। क्योंकि, ब्रज-भाषा के उत्थान और उसके बहुप्रान्तव्यापी होने का आधार वही है।

मैं पहले कह चुका हूं कि किस प्रकार सूफी सम्प्रदाय वाले प्रेम मार्ग का विस्तार मुसल्मानों की साम्राज्य-वृद्धि के साथ कर रहे थे और कैसे उनके इन मधुर भावों का प्रभाव भारतीय जनता पर पड़ रहा था। सूफी सम्प्रदाय वाले संसार की समस्त विभूतियों में ईश्वरीय सत्ता का विकास देखते हैं। वे परमात्मा की कल्पना प्रेम स्वरूप के रूप में