पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२१५

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( २०१ ) तत्परता के साथ कर रहे थे। सूफियों के सम्प्रदाय में परमात्मा प्रेमपात्र के रूप में देखा जाता है और सूफ़ीभक्त अपने को उसके प्रेमिक के रूप में अंकित करते हैं। यह प्रणाली भारत के लिये इसलिये अधिक उपयोगिनी नहीं सिद्ध हो सकती थी जितनी कि स्वामी वल्लभाचार्य को उद्भावित पद्धति । कारण इसका यह है कि पुरुष के प्रति पुरुष के प्रेम में वह स्वारस्य नहीं है जो पुरुष के प्रति स्त्री के प्रेम में। भारत की यह चिर प्रचलित परंपरा और इस देश का यही आदर्श है कि स्त्रियां पुरुषों पर आसक्त दिखलायी जाती हैं। इसलिये श्रीमती राधिका को भगवान कृष्णचन्द्र पर उत्सर्गीकृत-जीवन बनाकर स्वामी वल्लभाचार्य या उनके पहले के आचार्यो ने जिस मर्मज्ञता का परिचय दिया और परमात्मा की जिस उपासना- पद्धति का आदर्श उपस्थित किया वह अभूतपूर्व और अधिकतर भाव-प्रवण है। योरोप का प्रसिद्ध विद्वान् न्यूमैन क्या कहता है, उसे सुनिये १"पुरुषों में तुम कितने ही पौरुष-विकास-सम्पन्न क्यों न हो. उच्चतर आध्या-त्मिक आनन्द की ओर प्रगति करने के लिये तुम्हारी आत्मा को नारीरूप ही ग्रहण करना होगा।' भगवान के बालभाव की उपासना की कल्पना बड़ी ही मधुर है, साथ ही सर्वथा नवीन। स्वामी वल्लभाचार्य को छोड़कर यह उपासना पद्धति किसी के ध्यान में नहीं आई। जो धर्म अवतारवाद का मर्म नहीं समझ सकते वे बालभाव की उपासना की कल्पना कर भी नहीं सकते। संसार के कुछ धम्मों में परमात्मा को पिता और अपने को पुत्र मान कर उपासना करने की प्रणाली है। पर परमात्मा को बाल स्वरूप मानकर इसी भाव से उसकी उपासना करने की उद्भावना स्वामी वल्लभाचार्य का ही आवि- प्कार है । उपासना का प्रयोजन यह है कि परमात्मा के अशेप गुणों का मनन और चिन्तन करके तदनुरूप अपने को बनाना, आर्य धर्म का यह सिद्धान्त वाक्य है 'यञ्चिन्तति तद्भवति' मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बनता है। पौराणिक धम में नाम जपने की बड़ी महिमा है। निगुण- . --" If my soul is to go on into high spiritual blessedness, it must beecome a woman; yes, however, manly thou may be among men.,,-

         Newman.