पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२

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एक ही स्थान पर एक ही माता पिता से हुई, और इसलिये आदि में भाषा भी एक ही थी। मेरा विषय भाषा सम्बन्धी है, अतएव मैं देखूंगा कि क्या कुछ विद्वान् ऐसे हैं कि जिनकी यह सम्मति है कि आदि में भाषा एक ही थी, और काल पा कर उसमें परिवर्तन हुये हैं।

अक्षर विज्ञान के रचयिता लिखते हैं—(पृष्ट ४०)

सेमिटिक भाषाओं को आर्यभाषा से पृथक बतलाते हुये भी मैक्समूलर आगे चल कर कहते हैं कि आर्यभाषाओं के धातु रूप और अर्थ में सेमेटिक अगल-आटक, बन्टो और ओशीनिया की भाषाओं से मिलते हैं, अन्त में कहते हैं कि 'निस्सन्देह हम मनुष्य की मूलभाषा एक ही थी„

मिस्टर बाप कहते हैं—"किसी समय संस्कृत सम्पूर्ण संसार की बोल-चाल की भाषा थी,[१] एण्ड्रो जकसन डेविस कहते हैं—"भाषा भी जो एक आन्तरिक और सार्वजनिक साधन है, स्वाभाविक और आदिम है। भाषा के मुख्य उद्देश में कभी उन्नति का होना संभव नहीं, क्यों कि उद्देश सर्वदेशी और पूर्ण होते हैं, उनमें किसी प्रकार भी परिवर्तन नहीं हो सकता, वे सदैव अखण्ड और एक रस रहते हैं„ (हारमोनिया भाग ५ पृष्ट ७३—देखो अक्षर विज्ञान पृष्ट ४) आज कल यह सिद्धान्त आदर की दृष्टि से नहीं देखा जाता। और इसके पक्ष विपक्ष में बहुत बातें कही गई हैं। मैंने यहां इसकी चर्चा इसलिये की कि इस प्रकार के कुछ विद्वान हैं जो आदि में किसी एक ही भाषा का होना स्वीकार करते हैं, यदि यह मान लें तो आगे के लिये हमारा पथ बहुत प्रशस्त हो जाता है, फिर भी मैं इस वादग्रस्त विषय को छोड़ता हूं। मैं उस इण्डोयोरोपियन भाषा को ही लेता हूं, जो संसार की सब से बड़ी और व्यापक भाषा है। संस्कृत ही आदि में समस्त संसार की भाषा थी और वही कालान्तर में बदल कर नाना रूपों में परिणत हुई, यद्यपि इसका प्रतिपादन अनेक विद्वानों ने किया है, हाल में श्रीमान् शेषगिरि शास्त्रीने एक पृथक पुस्तक लिखकर भली प्रकार सिद्ध कर दिया है, कि उन द्रविड़ भाषाओं की उत्पत्ति भी संस्कृत से हुई है, जो अन्य वर्ग की


  1. "At one time Sanskrit was the one language spoken all over the world" Edinburgh Rev. Vol. XXXIII, 3. 43.