पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२२

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भूतकाल के रूप ‘गवा' भवा' में से व' निकालने पर जैसे अवधी में 'गा' 'भा' रूप बनते हैं वेसे हो ब्रजभाषा में भी 'य' को हटा कर गो' 'भो' बनाया जाता है जो बहुबचन में 'गे' भे' हो जाता है । ब्रजभाषा के करण का चिन्ह 'ते' और अवधो के करण का चिन्ह 'से' भूतकालिक कृदन्त में हो लगते हैं, जैसे किये ते' और 'किये से' जिनका अर्थ है 'करने से' । ब्रजभाषा और अवधी दोनों में कृदन्त का रूप समान अर्थात् लध्वन्त होता है, जैसे 'गावत', 'खात', 'अलसात', 'जम्हात' इत्यादि । अन्तर इतना हो है कि ब्रजभाषा में ‘गावतो', 'खातो', 'अलसातो', 'जम्हातो' इत्यादि भी लिख सकते हैं । व्रजभाषा में धातु के चिन्ह तीन हैं—एक के अन्त में 'नो'होता है जैसे ‘करनो' 'कहनो' आदि; दूसरे के अन्त में 'न' पाया जाता है जैसे लेन' 'देन इत्यादि और तीसरे के अन्त में 'बो' होता है, जैसे दैबो' 'लैबो' । देना लेना के दीबा, लोबो भो रूप बनते हैं। इन तीनों रूपों में से पहला रूप कारक चिन्ह-ग्राहो नहीं होता। शेष दो में कारक चिन्ह लगते हैं, जैसे लेन को, देन को, लैबे को, देवे को इत्यादि। अवधी में साधारण क्रिया के अन्त में केवल 'ब' रहता है, जैसे आउब' 'जाब' 'करब' इत्यादि । मध्यम पुरुष का विधि 'ब' में ई मिला कर ब्रज के दक्षिण भाग में बुन्देलखण्ड तक बोलते हैं, जैसे 'आयबी' करबी' इत्यादि। यह ब्रजभाषा का व्यापक प्रयोग है।

अब मैं ब्रजभाषा और अवधी के उन प्रयोगों को बतलाता हूं जिनमें भिन्नता है। ब्रजभाषा में भूत काल को सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ 'ने' का चिन्ह आता है। हाँ. यह अवश्य है कि इस भाषा के कुछ कवियों ने हो इसका प्रयोग कदाचित किया है। सूरदासादि महाकवियों ने प्रायः ऐसा प्रयोग नहीं किया। अवधो में ने' का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता। बचन के सम्बन्ध में यह देखा जाता है कि ब्रजभाषा में एक बचन का बहु बचन सभो अवस्था में होता है, जैसे 'लड़का' का 'लड़के' अलि का अलियां इत्यादि। अवधो में एक बचन का बहु बचन कारक-चिन्ह लगने पर हो होता है । ब्रजभाषा में भविष्य काल को क्रिया केवल तिङन्त ही नहीं होतो, उसमें खड़ी बोली के समान 'ग' का व्यवहार भी होता है।