पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२३

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( २०९ ) जैसे, ‘गावैगे।' इत्यादि । परन्तु अवधीमें ‘करिहइ' 'कहिहइ' आदि तिड्न्त रूप हो बनता है । अवधी इकार-बहुला और ब्रजभाषा यकार-बहुला है। पूर्व- कालिक क्रियाका अवधी रूप ‘उठाई', 'लगाइ' बनाइ'. होइ'. 'रोइ' इत्यादि होगा। किन्तु व्रजभाषाका रूप 'उठाय', 'लगाय', बनाय'. होय'. गेय आदि बनेगा । इसी प्रकार अवधी का 'करिहइ', 'चलिहइ'. 'होइहइ' व्रजभाषा में 'करिहय', 'चलिहय', 'होइहय' हो जायगा । परन्तु अन्तर यह होता है कि लिखने अथवा व्यवहार के समय ब्रजभाषा में हय' है' हो जाता है । इस लिये उसको ‘करिहै' चलिहै' होयहै' इत्यादि लिखते हैं। इसी प्रकार अवधी का इहां' व्रजभाषा में यहां' बन जाता है । अवधो का 'उ' व्रजभाषा में 'व' हो जाता है जैसे उहां' का वहां ओर हुआं' का ह्वां' ब्रजभाषा के शब्द प्राय खड़ो बोलो के समान दोन्ति होते हैं। बड़ो बोली की ऐसी पुलिङ्ग संज्ञायें, जो कि आकागन्त हैं. वृजभाषा में ओकारान्त बन जाती हैं। विशेषण एवं सम्बन्ध कारक के सर्वनाम भी इसी रूप में दृष्टि त होते हैं । जैसे गरो' झगरो' छोरो थोरो' 'साँवरो' 'गोगे' के.सो' जैसो' 'तैसो' 'बड़ो' छोटा हमागे' 'तुम्हारो' 'आपनो' इत्यादि । इसी प्रकार आकारान्त साधारण भूत कालिक कृदन्त क्रियायं भी ओकारान्त बनती हैं. जैसे आयो', दावो', लीवो' इत्यादि। पर अवधी के शब्द अधिकतर लवन्त या अकारान्त होते हैं जिससे लिंग भेद का प्रपंच कम होता है जैसे, ‘अस', जस'. 'तस', 'छोट'. 'बड़'. 'थोड़', 'गहिर'. 'साँवर', 'गोर', 'ऊँच', 'नीच' हमार', तोहार' इत्यादि । मोट . दूबर', 'पातर इत्यादि बिशेषण और आपन. मार. तोर, सर्वनाम एवं कर', 'सन', तथा कहँ','महँ' कारक के चिन्ह भी इसके प्रमाण हैं। अवधी में साधारण क्रिया का रूप भी प्रायः लध्वन्त ही होता है जैसे करव', 'धरब'. हँसब', 'बोलब', इत्यादि । अवधीके हियां' सियार'. कियारी'. 'वियाह', 'बियाज'. 'नियाव','पियास' आदि शब्द ब्रजभाषा में ‘ह्यां', 'स्यार'. 'क्यारी', 'ब्याह', 'ब्याज', 'न्याव', 'प्यास', आदि बन जाते हैं। अर्थान ऐसे शब्दों के आदि बर्ण का इकार स्वर लोप हो जाता है और वह हलन्त होकर परवण में मिल जाता है । ऐसा अधिकांश उसी शब्द में होता है जिसके मध्य में 'या' होता है ।