एकता का दृश्य सामने रखने की आवश्यकता बनी थी। यह जायसी द्वारा पूरी हुई।"[१]
अब मैं इन प्रेममार्गी सूफी कवियों की भाषा पर कुछ विचार करना चाहता हूं। प्रेममार्गी कवि लगभग सभी मुसल्मान और पूर्व के रहने वाले थे। इस लिये इनके ग्रन्थों की भाषा पूर्वी अथवा अवधी है। किन्तु यह देखा जाता है कि वे कभी कभी ब्रजभाषा शब्दों का प्रयोग भी कर जाते हैं। कारण यह है कि अवधी जहाँ व्रजभाषा से मिलती है वहां वह उससे बहुत कुछ प्रभावित है। दूसरी बात यह कि अवधी अर्द्ध मागधी ही का रूपान्तर है । और अद्ध मागधी पर शौरसेनी का बहुत कुछ-प्रभाव है। शौरसेनी का ही रूपान्तर ब्रजभाषा है। इस लिये इटावा इत्यादि के पास जहां अवधी ब्रजभाषा से मिलती है वहां की अवधी यदि ब्रजभाषा से प्रभावित हो तो यह स्वाभाविक है और उन स्थानों के निवासी यदि इस प्रकार की भाषा में रचना करें तो यह बात लक्ष्य योग्य नहीं । परन्तु देखा तो यह जाता है कि पूर्व प्रान्त के रहने वाले कवि भी अपनी अवधी की रचनाओं में व्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग करते हैं। मेरी समझ में इसका कारण यही है कि अवधी और ब्रजभाषा का घनिष्ट सम्बन्ध है । अधिकांश कवियों को यह ज्ञात भी नहीं होता कि वे किस भाषा के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और अज्ञातावस्था में एक भाषा के शब्दों का प्रयोग दूसरी भाषा में कर देते हैं। वे अधिक पठित नहीं थे. इसलिये अपने आसपास की बोलचाल की भाषा में ही रचना करते थे परन्तु अपने निकटवर्ती प्रान्त के लोगों का कुछ संसर्ग उनका रहता ही था इसलिये उनकी बोलचाल की भाषा का प्रभाव कुछ न कुछ पड़ ही जाता था। संकीर्ण स्थलों पर कवि को समुचित शब्द विन्यास के लिये जिस उधेड़ बुन में पड़ना होता है वह
अविदित नहीं । ऐसी अवस्था में अन्यभाषाओं के कुछ शब्द उपयुक्त स्थलों पर कवियों की भाषा में आये बिना नहीं रहते। जिस समय प्रेम-मार्गी कवियों ने अपनी रचना प्रारम्भ की थी उस समय कुछ धार्मिक रुचि, कुछ संस्कृत के विद्वानों के संसर्ग आदि से, संस्कृत तत्सम शब्द भी हिन्दी
- ↑ देखिए हिन्दी साहित्य का इतिहास १०३, १०४ पृष्ट