पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२४१

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मकु हिरकाइ लेइ हम्ह पासा ।
हिलगि मकोय न फारहु कंथा।'
दोठि दवंँगरा मेरवहु एका।'
औ भिउं जस दुरजोधन मारा।'
अलक जँजीर बहुत गिउ बाँधे ।'
तन तन बिरह न उपनै सोइ ।'
जो देखा तीवइ है साँसा।'
घिरित परेहि रहा तस हाथ पहुँच लगि वूड़ ।

मेंने इनकी कविता की भाषा पर विशेष प्रकाश इस लिये डाला है कि जिसमें उसके विषय में उचित मीमांसा हो सके । कहा जाता है कि उनके ग्रन्थ की भाषा ठेठ अवधी है। परन्तु जितने प्रमाण मैं ऊपर उद्धृत कर आया हूं उनसे स्पष्ट है कि उनमें अन्य भाषाओं औरों बोलियों के अति-रिक्त अधिकतर सँस्कृत के तत्सम शब्द भी सम्मिलित हैं, जो ठेठ अवधी में कभी व्यवहत नहीं हुये. एसी अवस्था में उसे हम ठेठ अवधी में लिखा गया स्वोकार नहीं कर सकते। हां यह कहना संगत होगा कि पदमावत की मुख्य भाषा अवधी है और इसमें कोई सन्देह नहीं कि पदमावत के रचयिता ने ही पहिले पहिल अवधी भाषा लिखने में वह सफलता प्राप्त की जिसका उनके पूर्ववर्ती कवि कुतबन और मंझन आदि नहीं प्राप्त कर सके थे। अब तक प्रेम-मार्गी कवियों के जितने ग्रन्थ हिन्दी संसार के सामने आये हैं उनके, आधार से यह बात निस्संकोच कही जा सकती है कि अवधी भाषा का प्रथम कवि होने का सेहरा कुतवन के सिर है । मैं पहले लिख आया हूं कि प्रान्तिक भाषा में रचना करने का सूत्र पात मैथिल- कोकिल विद्यापति ने किया। उनके दिखाये मार्ग पर चल कर अवधी में कविता करने वाला पहला पुरुष कुतवन है। उसकी रचना और उसके बाद की मंझन को कविता पर दृष्टि डालने से यह ज्ञात होता है कि अवधी भाषा में कविता करने का जो माग इन लोगों ने ग्रहण किया था उसी मार्ग पर