पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२७

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सकती, हिमालय पर्वत से निकली हुई नदियां यदि साइबीरिया तक पहुंच सकती हैं, तो उस प्रदेश में निवास करने वाली जनता योगेप में क्यों नहीं पहुंच सकती। भले ही हिमालय ममीपवर्ती प्रान्त मध्य एशियामें न हों, किन्तु क्या वे मध्य एशिया के निकटवर्ती नहीं। किसी विद्वान ने निश्चित रूपसे अबतक यह नहीं बतलाया कि मध्य एशिया के किसस्थान से आयलोग पूर्व और पश्चिम को बढ़े। अबतक स्थान के विषय में तक वितक है, कोई किसी स्थान की ओर संकेत करता है, कोई किसी स्थान की ओर । ऐसी अवस्था में यदि हिमालय प्रदेश को ही वह स्थान स्वीकार कर लिया जावे, तो क्या आपत्ति हो सकती है । महाभारत और पुगणों में ऐसे प्रसंग मिलते हैं, जिनमें भारतीय जनों का योरोपीय और अमरीका आदि जाने की चर्चा है । गजा मगग्ने अपने सो लड़कों को ऋद्ध होकर जब भारतवर्ष में नहीं रहने दिया, तब वे देशान्तरों में गये, और वहां उपनिवेश स्थापित किये। इसी प्रकार की और कथाय हैं, उनकी चर्चा बाहुल्य मात्र होगा।

चाह हम यह माने कि मध्य एशिया में आयलोग भारतवर्ष में आये. चाहे यह कि वे हिमालय के उत्तर पश्चिम भाग में उत्पन्न हुये और वहीं में भारतवर्ष में फलं, दोनों वान एमी हैं. जो बनलानी हैं, कि ज्या ज्या वे भारतवर्षमें फैलने लगे होंगे, त्या त्या उनकी बोल चालकी भाषा में स्थान और जल-वायु क विभेद से अन्तर पड़ने लगा होगा। ऋग्वेद में इस बात का भी वर्णन है कि इन आर्यों का संघप भी उनलोगों में बगबर चलता रहा, जो उस समय भारतवप के विभिन्न प्रदेशों में चार करते थे। इन लोगों की भी कोई भाषा अवश्य होगी, इमलिये दोनों की भाषाओं का परस्पर मंमिश्रण भी अनिवार्य था। धीरे धीरे काल पाकर वैदिक भाषा के अनेक शब्द विकृत हो गये, क्यों कि उनका शुद्ध उच्चारण सर्व साधारण द्वारा नहीं हो सकता था। एक शब्द को लोग पहले भी विभिन्न प्रकार में चोलते थे, अब इसकी और वृद्धि हुई। आवश्यकतानुसार अनाय भाषा के कुछ शब्द भी उसमें मिल गये, इसलिये काल पाकर बोलचाल की एक नई भाषा की सृष्टि हुई। इसी को पहली प्राकृत अथवा आय प्राकृत कहां