पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३०३

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में दृढ़ हैं। दूसरी बात यह है कि यदि वह विविध विवुध-जुत' है, अर्थात विविध देवता उस पर रहते हैं तो महाराज दशरथ जी के साथ विविध विद्वान रहते हैं । 'विवुध' का दोनों अर्थ है देवता और विद्वान् । दूसरे चरण में 'सुदक्षिणा' शब्द का दो अर्थ है । राजा दशरथ को अपने पूर्व पुरुष दिलीप' के समान बनाया गया है। इस उपपत्ति के साथ कि यदि उनके साथ उनकी पत्नी सुदक्षिणा थीं, जिनका उनको बल था, तो उनको भी सुन्दर दक्षिणा का अर्थात् सत्पात्र में दान देने का बल है। तीसरे चरण में उनको सागर समान कहा है, इस लिये कि दोनों ही'बाहिनी' के पति और गम्भीर हैं। 'बाहिनी' का अर्थ सरिता और सेना दोनों है। इसी चरण में उनको सूर्य के समान अचल कहा है । इस कारण कि 'छनदान प्रिय' दोनों हैं। इस लिये कि महाराज दशरथ को तो क्षण क्षण अथवा पर्व पर्व पर दान देना प्रिय है और सूर्य 'छनदा' (क्षणदा) न-प्रिय है अर्थात् रात्रि उसको प्यारी नहीं है। चौथे चरण में महाराज दशरथ को उन्होंने गंगा-जल बनाया है, क्योंकि दोनों भगीरथ-पथ गामी हैं ।महाराज दशरथ के पूर्व पुरुष महाराज भगीरथ थे अतएव उनका भगीरथ पथावलम्वी होना स्वाभाविक है। इस अंतिम उपमा में बड़ी ही सुन्दर व्यंजना है। गंगा-जल का पवित्र और उज्ज्वल अथच सद्भाव के साथ चुपचाप भगीरथ पथावलम्वी होना पुराण-प्रसिद्ध बात है । इम व्यंजना द्वारा महाराज दशरथ के भावो को व्यंजित करके कवि ने कितनी भावुकता दिखलायी है, इसको प्रत्येक हृदयवान भलीभांति समझ सकता है। अन्य उपमाओं में भी इसी प्रकार की व्यंजना है, परन्तु उनका स्पष्टीकरण व्यर्थ विस्तार का हेतु होगा। इस प्रकार के पद्यों से ‘रामचन्द्रिका' भरा पड़ा है। कोई पृष्ट इस ग्रन्थ का शायद ही ऐसा होगा कि जिसमें इस प्रकार के पद्य न हो । दो अर्थ वाला, आप ने देखा, उसमें कितना विस्तार है। तीन तीन चार चार अर्थ वाले पद्य कितने विचित्र होंगे उनका अनुभव आप इस पद्य से ही कर सकते हैं। मैं उन पद्यों में से भी कुछ पद्य आप लोगों के सामने रख सकता था । परन्तु उसकी लम्बी-चौड़ी व्याख्या से आप लोग तो घबरायेंगे ही, मैं भी घबराता हूं। इस लिये उनको छोड़ता हूं। केशवदासजी के