पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३०४

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पांडित्य के समर्थक सब हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ हैं। इस दृष्टि से भी मुझे इस विषय का त्याग करना पड़ता है॥

केशवदासजी का प्रकृति वर्णन कैसा है, इसके लिये मैं आप लोगों से उद्धृत पद्यों में से नम्बर ५, ६, ७, ९, १०, ११ की रचनाओं को विशेष ध्यान-पूर्वक अवलोकन करने का अनुरोध करता हूं। इन पद्यों में जहां स्वाभाविकता है वहां गम्भीरता भी है। कोई कोई पद्य बड़े स्वाभाविक हैं और किसी किसी पद्य का चित्रण इतना अपूर्व है कि वह अपने चित्रों को आंख के सामने ला देता है॥

'रामचन्द्रिका' अनेक प्रकार के छन्दों के लिये भी प्रसिद्ध है। इतने छन्दों में आज तक हिन्दी भाषा का कोई ग्रंथ नहीं लिखा गया। नाना प्रकार के हिन्दी के छन्द तो इस ग्रन्थ में हैं ही। केशवदासजी ने इसमें कई संस्कृत वृत्तों को भी लिखा है। संस्कृत वृत्तों की भाषा भी अधिकांश संस्कृत गर्भित है, वरन उसको एक प्रकार से संस्कृत की ही रचना कही जा सकती है। उद्धृत पद्यों में से बारहवां पद्य इसका प्रमाण है। भिन्न तुकान्त छन्दों की रचना का हिन्दी साहित्य में अभाव है। परन्तु केशवदास जी ने रामचन्द्रिका में इस प्रकार का एक छन्द भी लिखा है जो यह

मालिनी


गुणगण मणि माला चित्त चातुर्य शाला।
जनक सुखद गीता पुत्रिका पाय मीता।
अखिल भुवन भर्त्ता ब्रह्म रुद्रादि कर्त्ता।
थिरचर अभिरामी कीय जामातु नामी।

संस्कृत वृत्तों का व्यवहार सबसे पहले चन्द बरदाई ने किया है। उनका वह छन्द यह है:—

"हरित कनक कांति कापि चंपेव गौरा।
रसित पदुम गंधा फुल्ल राजीव नेत्रा।