पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३४२

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जिन्होंने वेदान्त के विषयों पर सुंदर ग्रंथ लिखे हैं। उनकी भाषा के विषय में यही कहा जा सकता है कि वह लगभग सुंदरदास की सी ही है । इसी शताब्दी में लालदासी पंथ के प्रवर्तक लालदास और साधु सम्प्रदाय के जन्म दाता बोरभान एवं ‘सत्यप्रकाश' नामक ग्रन्थ के रचयिता और एक नवीन मत के निर्माण कर्ता धग्णीदास भी हुये । परन्तु उनकी रचनायें अधिकतर साधुओं की स्वतंत्र भाषा ही में हैं, विचार भी लगभग वैसे ही हैं । इसलिये में उनकी रचनाओं को ले कर उनके विषय में कुछ अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं समझता ।


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इस शताब्दी के भक्ति मार्गवाले सगुणवादी भक्तों की ओर जब दृष्टि जाती है तो सबसे पहले हमारे सामने नाभादासजी आते हैं । वैष्णवों में इनकी रचनाओं का अच्छा आदर है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने शृंगार रस से मुख मोड़कर भक्ति-रस की धारा बहायी और भक्तमाल' नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें लगभग २०० भक्तों का वर्णन है। अपनी रचना में उन्हों ने वैष्णवमात्र को समान दृष्टि से देखा, और स्वयं रामभक्त होते हुए भी कृष्णचन्द्र के भक्तों में भी उतनी ही आदर बुद्धि प्रकट की जितनी रामचन्द्रजी के भक्तों में। उनके विषय में जो कुछ उन्हों ने लिखा है उसमें भी उनके हृदयकी उदारता और पक्षपात हीनता प्रकट होती है। उनका ग्रंथ ब्रजभाषा में लिखा गया है । इसका कारण उसकी सामयिक व्यापकता ही है । प्रियादासजी ने उनके ग्रन्थ पर टीका लिखी है, क्योंकि थोड़े में अधिक बातें कहने से उनका ग्रन्थ दुर्वोध हो गया है । उन्हों ने एक छप्पय में ही एक भक्त का हाल लिखा है । इसलिये थोड़े में ही उनको बहुत बातें कहनी पड़ी। ऐसी अवस्था में उनका ग्रंथ गूढ क्यों न हो जाता? प्रियादासजी की टीका ने इस गूढ़ता को अधिकतर अपनी टीका के द्वारा बोधगम्य बना दिया। पद्य ही में 'अष्टयाम' नामक उनका एक ग्रन्थ और है। यह ग्रन्थ भी साहित्यिक ब्रजभाषा ही में लिखा गया है। दोनों का एक एक पद्य देखिये:--

१-मधुर भाव सम्मिलित ललितलीला सुवलित छवि।
निरखत हरखत हृदय प्रेम बरखत सुकलित कवि ।