पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३७२

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१-'अफजलखान को जिन्हों ने मयदान मारा'

२-'देखत में रुसतमखां को जिन खाक किया'

३-'कैद किया साथ का न कोई बीर गरजा'

४-'अफजल का काल सिवराज आया सरजा'

उन्होंने प्राकृत भाषा के शब्दों का भी यत्र तत्र प्रयोग किया है। 'खग्ग' शुद्ध प्राकृत शब्द है । पर निम्न लिखित पंक्ति में वह ब्यवहृत है।

'भूषन भनत तेरी किम्मति कहाँ लौं कहौं

अजहूँ लौं परे खग्ग दाँत खरकत हैं।

पंजाबी भाषा का प्रयोग भी कहीं कहीं मिलता है। 'पीरां पैगंवरां दिगंबरां दिखाई देत' इस वाक्य में चिन्हित शब्द पंजाबी हैं। कोबी कहैं कहाँ ओ गरीबी गहे भागी जाहिं इसमें कीबो' शब्द बुंदेलखंडी है। इसी प्रकार फारसी शब्दों के प्रयोग करने में भी वे अधिक स्वतंत्र हैं, शब्द गढ़ भी लेते हैं। गाढ़े गढ़ लीने अरु बेगे कतलाम कीन्हे.' 'चारि को सो अंक लंक चंद सरमाती हैं'. 'जानि गैर मिसिल गुसीले गुसा धारि उर' इन वाक्य खंडों के चिन्हित शब्द ऐसे ही हैं। प्रयोजन यह कि उनकी मुख्य भाषा व्रजभाषा अवश्य है, परंतु शब्द-विन्यास में उन्होंने बहुत स्वतंत्रता ग्रहण की है। फ़ारसी के शब्दों का जो अधिक प्रयोग उनकी रचना में हुआ. उसका हेतु उनका विषय है, शिवाजी की विजय का सम्बन्ध अधिकतर मुसल्मानों की सेना और वर्तमान सम्राट औरंगज़ेब से था। इस लिये उनको अनेक स्थानों पर अपनी रचना में फ़ारसी अरबो के शब्दों का प्रयोग करना पड़ा। कहीं कहीं उनको उन्होंने शुद्ध रूप में ग्रहण किया और कहीं उनमें मनमाना परिवर्तन छन्द की गति के अनुसार कर लिया। इसो सूत्र से खड़ी बोली के वाक्यों का मिश्रण भी उनकी कविता में मिलता है। परन्तु इन प्रयोगों का इतना वाहुल्य नहीं कि उनसे उनकी मुख्य भाषा लाञ्छित हो सके।

(४) कुलपति मिश्र आगगे के निवासी चतुर्वेदी ब्राह्मण थे। ये सँस्कृतके बड़े विद्वान् थे इन्हों ने काव्य-प्रकाश के आधार पर 'रस-रहस्य' नामक