पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३८१

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शेख भनि तहां मेरे त्रिभुवन राम हैं जु

दीनबंधु स्वामी सुरपतिन को पति है

बैरी को न बैर बरिआई को न परवेस

हीने को हटक नाहीं छीने को सकति है।

हाथी की हँकार पल पाछे पहुँचन पावै

चींटी की चिंघार पहिले ही पहुंचति है ।

कहा जाता है कि आलमने माधवानल कामकंदला नामक एक प्रेम कहानी भो लिखो है । आशा है, कि इनका यह ग्रंथ भी सरसतापूर्ण होगा और इसमें भी इनके प्रेम-मय हृदय की कमनीय कलायें विद्यमान होंगी। किन्तु यह ग्रंथ देखने में नहीं आया। इसकी चर्चा ही मात्र मिलती है। अच्छा होता यदि इस पुस्तक का कुछ अंश मैं आपलोगों की सेवा में उपस्थित कर सकता। परन्तु यह सौभाग्य मुझको प्राप्त नहीं हुआ। आलम-दम्पति की रचनाओं में हृदय का वह सोन्दर्य दृष्टिगत होता है जिसको ओर चित्त स्वमावतया खिंच जाता है। इनके ऐसे भावुक कवि ही किसी भाषा को अलंकृत करते हैं। जेसी ही इनकी भावमयी सुन्दर रचनायें हैं वैसी ही सरस और मुग्धकरी इनकी ब्रजमाषा है। इनके अधिकांश पद्य सहृदयता की मूर्ति हैं, इन्हों ने इनके द्वारा हिन्दो-साहित्य-भांडार का बड़े मुन्दर रत्र प्रदान किये हैं।

इन्हीं सहृदय दम्पति के साथ में ताज की चर्चा कर देना चाहता हूं। ये एक मुसल्मान स्त्री थीं । इनके वंश इत्यादि का कुछ पता नहीं । परंतु इनकी स्फुट रचनायें यत्र तत्र पाई जाती हैं। मुसल्मान स्त्री होने पर भी इनके हृदय में भगवान कृष्णचंद्र का प्रेम लबालब भरा था। इनकी रच- नाओं में कृष्ण-प्रेम की ऐसी सुंदर धारायें बहती हैं जो हृदय को मुग्ध कर देती हैं। इनके पद्यों का एक एक पद कुछ ऐसी मनमोहकता रखता है जो चित्त को बलात् अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । इनकी रचना में पंजाबो शब्द अधिक मिलते हैं । इससे ज्ञात होता है कि ये पंजाब प्रान्त