पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३८४

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का गौरव प्राप्त है, यहाँ अरबी, फारसी और संस्कृत के विद्वान मुबारक अली का जन्म हुआ था। इन्होंने 'अलक शतक' और 'तिल शतक' नामक दो ग्रन्थ सरस दोहों में लिखे हैं। इनकी स्फुट कवितायें भी बहुत सी मिलती हैं। इनकी भाषा व्रजभाषा है और उसमें प्रांजलता इतनी है कि मुक्त कंठ से उसकी प्रशंसा की जा सकती है इनकी रचना में प्रवाह है और इनकी कथनशैली भी मोहक है। मधुरता इनके शब्दों में भरी मिलती है। मुसल्मान हाने पर भी इन्होंने हिन्दी भाषा पर अपना अंसा अधिकार प्रकट किया है. वास्तवमें वह चकितकर है । इनकी कुछ रचनायें देखियेः-

२-कान्ह की बाँकी चितौनि चुभी

झुकि काल्हि ही झांकी है ग्वालि गवाछनि

देखी है नोखी सी चोखी सी कोरनि

ओछे फिरै उभरै चित जा छनि ।

मान्यो सँभारि हिये में मुबारक

ए सहजै कजरारै मृगाछनि ।

सींक लै काजर दे री गंवारिनि

आँगुरी तेरी कटैगी कटाछनि ।

२-कनक बरन बाल नगन लसत भाल

मोतिन के माल उर सोहै भलीभांति है

चंदन चढ़ाई चारु चंदमुखी मोहिनी सी

प्रात ही अन्हाइ पगु धारे मुसकाति है।

चूनरी विचित्र स्याम सजि कै मुबारक जू

ढाँकि नख सिख ते निपट सकुचाति है ।

चंद मैं लपेटि कै समेटि कै नखत मानो

दिन को प्रनाम किये रात चली जाति है।