पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३७३)

एक बीर को सबै डरत है ।

घेरि क्यों न रस धाय धरत हैं ।

बालक देखु करी यह करणी ।

सेना जूझि परी सब धरणी ।

दुर्योधन या विधि कह्यो,

. कर्ण द्रोण सों बैन ।

बालक सब सेना बधी,

तुम सब देखत नैन ।

उनकी रचना में ब्रजभाषा के नियम के बिरुद्ध शकार. णकार और संयुक्त वर्णों का प्रयोग भी देखा जाता है । इसका कारण यह मालूम होता है कि बीर रस के लिये शायद परुषावृत्ति का मार्ग ग्रहण करना ही उन्होंने युक्तिसंगत समझा ।

पुरोहित गोरेलाल महाराज छत्रसाल के दरबार के मान्य कवि थे । वे एक युद्ध में महाराज छत्रसाल के साथ गये और वहीं बोग्ता के साथ लड़ कर मरे। बीर रस की ओजमयी रचना करने में भूषणके उपरान्त इन्हीं का नाम लिया जाता है। 'छत्र प्रकाश' इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जिसमें इन्होंने महागज छत्रसाल की बीग्गाथायें बड़ी निपुणता से लिखी है। यह दोहा चौपाई में लिखा गया है और प्रवन्ध ग्रन्थ है। इनकी भाषा साहि- त्यिक ब्रजभाषा है । किन्तु उसमें बुन्देलखंडो शब्दों का प्रयोग आवश्य- कता से कुछ अधिक है। फिर भी इनकी रचना ओजमयी और प्रांजल है और वे सब गुण उसमें मौजूद हैं जिन्हें वीर-रस की कविता में होना चाहिये । 'छत्रप्रकाश' विशाल ग्रन्थ है और इनका कीर्तिस्तम्भ है। इसके अतिरिक्त 'विष्णु विलास' और 'गजविनोद' नामक दो ग्रन्थ इन्हों ने और रचे । ये दोनों ग्रन्थ भी अच्छे हैं. परन्तु इनमें वह विशेषता नहीं पायी जाती जो 'छत्रप्रकाश' में है। गोरेलाल जी का उपनाम 'लाल' है। इनकी कुछ रचनायें देखिये:-