पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३९

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पालि में पारगू ( पारग) आदि शब्द भी पाये जाते हैं, ए समस्त शब्द वैदिक भाषा में से ही उस में आये हैं, यथा अग्रगु अर्थ में अग्रगू आदि ( पाणिनि ६, ४,४०)। वैदिक भाषा में तुम अर्थ में तवै, तवेॾ् प्रत्यय का प्रयोग अधिकता से देखा जाता है ( पा० ३, ४, ९) जैसे पातु के अर्थ में 'पात' इत्यादि। पालि में भी इस प्रकार का प्रयोग विल्कुल लुप्त नहीं हो पाया है। इन बातों पर दृष्टि देने से पालि की प्राचीनता निर्विवाद है, अन्य प्राकृत भाषायें उसके बाद की हैं। ये विशेषतायें मागधी में नहीं हैं, और उसका नाम प्रान्त विशेष से भी सम्बन्ध रखता है। इसलिये कुछ लोग उसको पाली नहीं मानते, किन्तु अधिकतर विद्वानों की सम्मति वही है,जिसका उल्लेख मैंने पहले किया है।

कुछ विद्वान् गाथा से पालि की उत्पत्ति मानते हैं। पालि प्रकाशकार लिखते हैं—(पृ० ४८, ५०)

"गाथा की भाषा के सम्बन्ध में पूर्वकालके पण्डितगणने बहुत आलोचना की है। इनमें भारतके सुप्रसिद्ध प्राच्य तत्वविद्यावित डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र ने उसके विषय में जो आलोचना की है, उसको अध्यापक मैक्समूलर और डाक्टर वेबर प्रमुख विद्वानोंने भी स्वीकार किया है।"

"मिस्टर वन उफ़ कहते हैं, कि गाथा विशुद्ध संस्कृत और पालि की मध्यवर्ती भाषा है डाक्टर मित्रने इसको माना है, और वे सोचते हैं कि यह गाथा ही शाक्यसिंह के जन्म ग्रहण के पूर्व देशभाषा थी। संस्कृत से गाथा और ग्राथा से पालि की उत्पत्ति हुई है" * गाथा के विषय में ऐसा विचार होने का कारण यह है कि उसमें संस्कृत वाक्यों का बड़ा अशुद्ध प्रयोग हुआ है। उसकी भाषा न तो

  • "The language of the Gatha is believed, by M. Burnouf, to be intermediate between the Pali and the pure Sanskrit........... it would not be unreasonabe to suppose that the Gatha, which preceded it, was the dialect of the millions at the time of Sakya's advent and.or sometime before it." lodo-Aryan, Vol. VI, p. 295.