पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३९६

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केशवदास को छोड़ कर हिन्दी का अन्य कोई कवि नहीं कर सका। इस ग्रंथ में युद्ध का वर्णन बड़ा ही ओजमय है। ऐसे ऐसे छंद युद्ध के वर्णनों में आये हैं जो अपने शब्दों को युद्धानुकूल बना लेते हैं। कहीं कहीं इस प्रकार के शब्द लिखे गये हैं जो युद्ध-कालिक दृश्य को सामने ला देते हैं और जिनके पढ़ने से युद्ध को मार काट. शस्त्रों का झगत्कार. वाणों की सनसनाहट और अस्त्रों के परस्पर टकराने की ध्वनि श्रवणगत होने लगती है । जैसे.

तागिड़दं तीरं छागिड़दं छुढें ।
बागिड़दं बोरं लागिड़दंलु, इत्यादि

मेग विचार है कि यह विशाल ग्रन्थ हिन्दीसाहित्य का गौरव है, और इसकी रचना कर के गुरु गोबिन्द सिंह ने उसके भाण्डार को एक ऐमा उज्ज्वल रत्न प्रदान किया है. जिसकी चमक दमक विचित्र और अद्भुत है । आदि ग्रन्थ साहब में शान्त रस का प्रवाह बहता है। उनमें त्याग और विगग का गीत गाया गया है. उससे सम्बन्ध रखने वाली दया. उदा- रता. शान्ति एवं सरलता आदि गुणों की ही प्रशंसा को गयी है। यह शिक्षा दी गयी है कि मानसिक विकारों को दूर कगे और दुर्दान्त इन्द्रियों का दमन । परन्तु उसको दृष्टि संसार-शरीर के उन रोगों के शमन की ओर उतनी नहीं गयी जो उस पवित्र ग्रन्थ के सदाशय-मार्ग के कंटक स्वरूप कहे जा सकते हैं । दशम प्रन्थ माझ्बकी र चना का गुरु गोविंदसिंह ने इस न्यूनता की पूर्ति को है। उन्होंने अपने ग्रन्थ में ऐसे उत्तेजक भाव भरे हैं जिससे ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जो कंटक भूत प्राणियो को पूर्णतया विध्वंस कर सके। इस शक्ति के उत्पन्न करने के लिये ही उन्होंने अपने ग्रन्थ में युद्धों का भी वर्णन ऐसी प्रभाव शाली भाषा में किया है जो एक बार निर्जीव को भी सजीव बनाने में समर्थ हो। इसी उद्देश्य से उन्होंने सप्तशती के तीन तीन अनुवाद किये। पौड़ियों में जो नोसग अनुवाद है, उसमें वह ओजस्विता भरी है जो सूत्री रगों में भी रक्त संचार करती है। कृष्णावतार में खड्गसिंह के युद्ध का ऐसा ओजमय वर्णन है जिसे