पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३९७

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पढ़ने से कायर-हृदय भी बीर बन सकता है। ऐसे ही विचित्र वर्णन और भी कई एक स्थलों पर हैं। यथा समय हिन्दू जाति में ऐसे आचार्य उत्पन्न होते आये हैं जो समयानुसार उसमें ऐसी शक्ति उत्पन्न करते जिससे वह आत्म-रक्षण में पूर्णतया समर्थ होती। उत्तर भारत में गुरु गोविंदसिंह और दक्षिण भारत में स्वामी रामदास सत्रहवीं सदी के ऐसे ही आचार्य थे। गुरु गोविंदसिंह ने पंजाब में सिक्खों द्वारा महान शक्ति उत्पन्न की, स्वामी रामदास ने शिवा जो ओर महाराष्ट्र जाति की रगों में बिजली दौड़ा दो। इस दृष्टि से दशम ग्रन्थ की उपयोगिता कितनी है, इसका अनुभव हिन्दो भापा भाषी विद्वान स्वयं उस ग्रन्थ को पढ़कर कर सकते हैं। इस सत्रहवीं शताब्दी में एक प्रेम-मार्गी कवि नेवाज भी हो गये हैं। कहा जाता है कि ये जाति के ब्राह्मण थे और छत्रसाल के दरबार में रहते थे। ये थे बड़े रसिक हृदय । जहां गारे लाल पुरोहित बीर रस की रचनायें कर महाराज छत्रसाल में ओज भरते रहते थे। वहाँ ये शृंगार रस की रचनायें कर उन्हें रिझाते रहते थे। नेवाज नाम के तीन कवि हो गये हैं। इन तीनों की रचनाय मिल जुल गई हैं। किन्तु सग्मता अधिक इन्हीं की रचना में मानी गयी है। इनका नेवाज नाम भ्रामक है । क्यों एक ब्राह्मण ने कवितामें अपना नाम नेवाज' रक्खा इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। छत्रसाल ऐसे हिन्दू भाव-सम्पन्न गजा के यहां रह कर भी उनका नेवाज नाम से परिचित होना कम आश्चय्य जनक नहीं। जो हो. परन्तु हिन्दी संसार में जितने प्रेमोन्मत्त कवि हुये हैं उनमें एक यह भी हैं। इनकी रचना की मधुरता और भावमयता को सभी ने प्रशंसा को है। इनको भापा सरस व्रजभाषा है। बुन्देलखंड में रह कर भी वे इतनो प्रांजल व्रज- मापा लिग्ब सके, यह उनके भाषाधिकार को प्रकट करता है। उनके दो पद्य देखियेः-

(१) देखि हमें सब आपुस में जो
कळू मन भावै सोई कहती हैं।