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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३९९

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और ब्राह्मण जाति के न भी हों तो देखना यह है कि साहित्य में उनका क्या स्थान है। मेरा विचार है कि सब बातों पर दृष्टि रख कर यह कहना पड़ेगा कि ब्रजभाषा का मुख उज्ज्वल करनेवाले जितने महाकवि हुये हैं उन्हीं में एक आप भी हैं। एक दो विषयों में कवि-कर्म करके सफलता लाभ करना उतना प्रशंसनीय नहीं, जितना अनेक विषयों पर समभाव से लेखनी चला कर साहित्य-क्षेत्र में कीर्ति अर्जन करना। वे रीति-ग्रंथ के आचार्य ही नहीं थे और उन्होंने काव्य के दसो अंगों पर लेखनी चला कर ही प्रतिष्ठा नहीं लाभ की, वेदान्त के विषयों पर भी बहुत कुछ लिख कर वे सर्व देशीय ज्ञान का परिचय प्रदान कर सके हैं । इस विषय पर उनकी 'ब्रह्मदर्शन-पचीसी', 'तत्वदर्शन पचीसी', 'आत्म दर्शन-पचीसी' और जगत दर्शन पचीसो' आदि कई अच्छी रचनायें हैं । उनके 'नीत शतक', 'रागरत्नाकर', 'जाति विलास', वृक्ष विलास' आदि ग्रंथ भी अन्य विषयों के हैं और इनमें भी उन्होंने अच्छी सहृदयता और भावुकता का परिचय दिया है। उनका देव प्रपंच माया' नाटक भी विचित्र है। इसमें भी उनका कविकर्म विशेप गौरव रखता है। श्रृंगार रस का क्या पूछना ! उसके तो वे प्रसिद्धि प्राप्त आचार्य हैं, मेग विचार है कि इस विषय में आचार्य केशवदास के बाद उन्हों का स्थान है। उनकी रचनाओं में रीति ग्रंथों के अतिरिक्त एक प्रवन्ध-काब्य भी है जिसका नाम देव-चरित्र' है, उसमें उन्होंने भगवान कृष्ण चन्द्र का चरित्र वर्णन किया है। प्रेम चंद्रिका' भी उनका एक अनूठा ग्रंथ है. उसमें उन्होंने स्वतंत्र रूप से प्रम के विषय में अनूठी रचनायें की हैं। कवि-कर्म क्या है ? भापा और भावों पर अधिकार होना और प्रत्येक विषयों का यथा तथ्य चित्रण कर देना। देव जी दोनों बातों में दक्ष थे। मत्रहवीं और अट्ठारहवीं शताब्दी में यह देग्वा जाता है कि उस समय जितने बड़े बड़े कवि हुये उनमें से अधिकांश किसी राजा-महाराजा अथवा अन्य प्रसिद्ध लक्ष्मी पात्र के आश्रय में रहे। इस कारण उनकी प्रशंसा में भो उनको बहुत सी रचनायें करनी पड़ी। कुछ लोगों की यह सम्मति है कि ऐसे कवि अथवा महाकवियों से उच्च कोटि की रचनाओं और सच्ची भावमय कविताओं के रचे जाने की आशा