पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४१७

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  भनत कविंद सुर नर नाग नारिन की
       सिच्छा है कि इच्छारूप रच्छन अछेहकी।
  पतिव्रत पारावार वारी कमला है।
       साधुताकी कैसिला है कैकला है कुलगेह को।
 'तोप' का मुख्य नाम तोषनिधि है। ये जाति के ब्राह्मण और

इलाहाबाद जिले के रहने वाले थे। 'सुधानिधि' नामक नायिका भेद का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ इन्होंने ग्चा । यही इनका प्रधान ग्रन्थ है। 'विनय शतक और 'नख शिख' नामक और दो ग्रन्थ भी इनके बताये जाते हैं। तोष की गणना ब्रजभाषा के प्रधान कवियों में होती है । इनको विशेषता यह है कि इनको भाषा प्रौढ़ और भावमयी है । मिश्र वन्दुओं ने इनका एक काल हो माना है और उसके अन्तर्गत बहुत से कवियों को स्थान दिया है। उन्हों ने इनकी ग्चना को कसौटी मान कर और कवियों को रचनाओं को उसी पर कसा है। इस प्रकार जो कविता उन्हों ने प्रौढ़ और गम्भीर पायो उसे तोप की श्रेणी में लिखा । अन्य हिन्दी साहित्य का इतिहास लिम्बनेवालों ने भी तोष को आदर्श कवि माना है। इनमें यह विशेषता अवश्य है कि इन्हों ने अपनी रचनाओं में शिथिलता नहीं आने दी, और भाषा भी ऐसी लिखी जो टकसाली कहो जा सकतो है। उनकी भाषा साहित्यिक व्रजभाषा है । और अधिकांश निर्दोष है। उनके कुछ पद्य नीचे लिखे जाते हैं ।

१---भूषन भूषित दूषन हीन

           प्रवीन महारस मैं छवि छाई ।.
   पूरी अनेक पदारथ तें जेहि
           में परमारथ स्वारथ पाई ।
   औ उकतैं मुकतैं उलही कवि
           तोष अनोखी भरी चतुराई ।