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एक खड़ी बोली की रचना देखिये:---
५---आप दरियाव पास नदियों के जाना नहीं दरियाव पास नदी होयगी सो धावैगी। दरखत बेलि आसरे को कभी राखत ना। दरखत ही के आसरे को बेलि पावैगी । लायक हमारे जो था कहना सो कहा मैंने, रघुनाथ मेरी मति न्याव ही को गावैगी। वह मुहताज आपकी है आप उसके न आप कैसे चलो वह आप पास आवैगी। गुमान मिश्र इसलिये प्रसिद्ध हैं कि उन्होंने संस्कृत के नैषध काव्य
का अनुवाद ब्रजभाषा में किया। उनके रचे अलंकार नायिका-मंद आदि काव्य-सम्बन्धी कतिपय ग्रंथ ओर कृष्ण वन्द्रिका' नामक एक अन्य ग्रंथ का भी पता चला है । परन्तु इनमें अबतक कोई प्रकाशित नहीं हुआ। ये संस्कृत के विद्वान् थे ओर हिन्दी भाषा पर इनका बड़ा अधिकार था। परंतु इनका नैषध का अनुवाद उत्तम नहीं हुआ। उसमें स्थान स्थान पर बड़ी जटिलता है। वाच्यार्थ भी स्पष्ट नहीं और जैसी चाहिये वैसी उसमें सरसता भी नहीं। फिर भी उसके अनेक अंश सुंदर और मनोहर हैं। ग्रंथ की भाषा साहित्यिक व्रजभाषा है किंतु उसमें संस्कृत का पुट अधिक है । कुछ पद्य देखियेः -
---हाटक हंस चल्यो उड़ि के नभ में दुगुनी तन ज्योति भई । लीक सी खैंचि गयो छन में छहराय रही छबि सोनमई नैनन सों निरख्यो न बनाय कै कै उपमा मन मांहि लई ।