पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४३

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और यही तीसरा सिद्धान्त है, जिस को अधिकांश भाषा विज्ञान वेत्ता स्वीकार करते हैं। ऐसी अवस्था में दूसरे सिद्धान्त की अग्रौढ़ता अप्रकट नहीं। जितनी बातें पहले कही जा चुकी हैं वे भी कम उपपत्ति मूलक नहीं हैं।

एक बात और है वह यह कि इण्डो योरोपियन भाषा की छानबीन के समय भारतीय भाषाओं में से संस्कृत ही अन्य भाषाओं की तुलना मूलक आलोचना के लिये ली गई है, पालि, अथवा मागधी किम्बा अन्य कोई प्राकृत नहीं, इससे भी संस्कृत की मूल भाषा मूलकता सिद्ध है। निम्नलिखित पंक्तियाँ इस बात को और पुष्ट करती हैं-

“यथार्थ वैज्ञानिक प्रणाली से भाषा की चर्चा पहले पहल भारतवर्ष में ही हुई इसके सम्बन्ध में एक अंग्रेज विद्वान के कथन-१ का सारांश यह है कि भारतीयों ने ही सर्व प्रथम भाषा को ही भाषा का रूप दिया । भारतीय ऋषियों ने सैकड़ों वर्ष तक वैदिक तथा लौकिक संस्कृत भाषा को मथ कर व्याकरण शास्त्र का उत्कर्ष विधान किया । पाणिनि का व्याकरण इन गवेषणाओं का ही सार है" भाषाविज्ञान (पृष्ट ३२)।

योरोप के प्रसिद्ध विद्वान मैक्समूलर क्या कहते हैं उसे भी सुनिये-

"मानव भाषा समुद्र में देशभाषायें द्वीप की भांति इधर उधर विखरी पड़ी थीं वे सब मिलकर महाद्वीप का स्वरूप नहीं धारण कर पाती थीं। प्रत्येक विज्ञान के इतिहास में यह आपत्तिपूर्ण समय सामने आता है। यदि अचा- नक वह आनन्द मूलक घटना न घटी होती, जिसने इन बिखरे अंशों को बिजली की तरह चमक कर एक नियंत्रित रूप से प्रकाश में ला दिया, तो यह अनिश्चित था कि भाषा के विद्यार्थियों का हार्विज और एडेलंग की भाषा सम्बंधिनी लम्बी सूचियों में अनुराग बना रहता या नहीं। यह .| "The native grammarians of India had at an early period analy.ed both the phonetic sounds and vocabulary of Sanskrit with astonishing precision and drawn up far more scientific system of grammar than the philologist of Alexandria or Rome had been able to attain.