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दिसि बिदिसन ते उमड़ि मढ़ि लीन्हों नभ, छाड़ि दीन्हें धुरवा जवासे जूथ जरिगे। डहडहे भये द्रुम रंचक हवा के गुन कहूं कहूं मोरवा पुकारि मोद भरिगे। रहि गये चातक जहाँ के तहाँ देखत ही सोमनाथ कहै बूंदा बूंदि हूं न करिगे। सोर भयो घोर चारों ओर महि मंडल मैं आये घन आये घन आय के उघरिगे ।
शंभुनाथ मिश्र ने 'रस-कल्लोल. रस-तरंगिणी और 'अलंकार दोपक'
नामक तीन ग्रंथ बनाये हैं । ये फ़तेहपुर के रहने वाले थे । इनकी रचना सुन्दर है । पर राजा भगवंत राय खीचो की प्रशंसा ही उसमें अधिक है। वे उनके आश्रयदाता थे। एक पद्य देखिये:-
आजु चतुरंग महाराज सेन साजत ही धौंसा की धुकार धूर परी मुँह याही के। भय के अजीरन ते जीरन उजीर भये सूल उठी उर में अमीर जाही ताही के। बीर खेत बीच बरछी लै बिरुझानो इतै धीरज न रह्यो संभु कौन हूँ सिपाही के। भूप भगवंत बीर रवाही कै खलक सब स्याही लाई बदन तमाम पादसाही के ।
ऋषिनाथ वंदी जन और असनी के रहने वाले थे । 'अलंकार मणि-
मंजरी' नामक एक ग्रंथ इन्होंने बनाया है । उसका एक पद्य देखिये । इनकी रचनाओं में प्रतिभा झलकती मिलती है:---