पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४३३

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ब्रजवारी गँवारी दै जानै कहा यह चातुरता न लुगायन मैं।
पुनि बारिनी जानि अनारिनी है रुचिएतीन चंदन नायन मैं।
छविरंग सुरंग के बिंदु बने लगैं इन्द्र बधू लघुतायन मैं ।
चित जो चहैं दी चकसी रहैं दो केहिदी मेंहदी इन पायन मैं।
  देवकी नंदन ब्राह्मण और कन्नौज के पास के रहनेवाले थे। इन्होंने
चार पांच ग्रंथों की रचना को है, जिनमें 'शृंगार चरित्र' और 
'अवधूत-
भूपग' अधिक प्रसिद्ध हैं । इनका ' सरफ़राज़-चन्द्रिका ' नामक 
ग्रंथ भी
अच्छा है। इनकी भाषा टकसाली है और उसमें सहृदयता पाई 
जाती है ।
एक पद्य देखिये :---
    मोतिन की माल तोरि चीर सब चीरि डारे
        फेरि कै न जैहों आली दुख बिकरारे हैं।
    देवकी नंदन कहैं धोखे नाग छौनन के
        अलकैं प्रसून नोचि नोचि निर वारे हैं।
    मानि मुखचंद भाव चोंच दई अधरन
        तीनों ए निकुंजन में एकै तार तारे हैं ।
    ठौर ठौर डोलत मराल मतवारे
        तैसे मोर मतवारे त्यों चकोर मतवारे हैं।
  मानु कवि ने नरेन्द्र भूषण' नाम का एक ग्रन्थ लिखा है । 
उसमें 
विशे-
षता यह है कि अलंकारों के उदाहरण सब रसों के दिये हैं। 
इनकी रचना
अच्छी है। ये बुन्देले थे और राजा रनजोर सिंह के यहां रहते थे। 
इनका
एक पद्य देखिये:---
   घन से सघन स्याम इंदु पर छाय रहे
       बैठी तहां असित द्वीरेफन की पाँति सो।
   तिनके समीप तहाँ खंज की सी जोरी लाल 
       आरसी से अमल निहारे बहुभांति सी।