पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४४४

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इन्हों ने इच्छानुसार लघु को दीर्घ और दीर्घ को लघु बनाया है और संस्कृत के तत्सम शब्दों को यत्र-तत्र ब्रजभाषा के रूप में भी ग्रहण किया है। एक बात और इनमें देखी जाती है । वह यह कि नायिका के शिख नख से सम्वन्ध रखने वाले कतिपय फारसी उपमानों को भी इन्होंने अपनी रचना में ग्रहण कर लिया है, जैसा इनके पहले के किसी हिन्दी के कवि अथवा महाकवि ने नहीं किया था। उन्हों ने शब्दों को इच्छा- नुसार तोड़ा मरोड़ा भी है और कई प्रान्तिक शब्दों से भी काम लिया है । इनके कुछ पद्य नीचे लिखे जाते हैं । उनको पढ़िये और चिन्हित शब्दों पर विचार भी करते जाइये।

शिव विष्णु ईश बहु रूप तुई।
नभ तारा चारु सुधा कर है।
अं बा धारानल शक्ति स्वधा
स्वाहा जल पौन दिवाकर है।
हम अं शा अं श समझते हैं
सब खाक जाल से पाक रहैं।
सुन लाल बिहारी ललित ललन
हम तो तेरे ही चाकर हैं ।

२-कारन कारज ले न्याय कहै
जोतिस मत रवि गुरु ससी कहा।
ज़ाहिद ने हक्क़ हसन यूसुफ़
अरहन्त जैन छवि वसी कहा।
रति राज रूप रस प्रे म इश्क
जानी छवि शोभा लसी कहा।
लाला हम तुम को वह जाना जो
ब्रह्म तत्व त्वम असी कहा ।