पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४४५

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३— मुख सरद चन्द पर ठहर गया
जानो के बु दं पसोने का।
या कुन्दन कमल कली ऊपर
झमकाहट रक्खा मोने का।
देखे से होश कहां रहवै जो
पिदर बूअली सीने का।
या लाल बदख शां पर खींचा
चौका इल्मास नगीने का।
४— हम खू ब तरह से जान गये
जैसा आनँद का कन्द किया।
सव रूप सील गुन तेज पुं ज
तेरे ही तन में बन्द किया।
तुझ हुस्न प्रभा की बाकी ले
फिर विधि ने यह फरफन्द किया
चंपकदल सोनजुही नरगिस
चामोकर चपला चंद किया।
५— मुख सरद चन्द्र पर स्त्रमसोकर
जगमगै नखत गन जोती से।
कै दल गुलाब पर शबनम
के हैं कनके रूप उदोती से।
हीरे की कनियां मंद लगै हैं
सुधा किरन के गोती से।