पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४४६

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आया है मदन आरती को
घर कनक थार में मोती से ।
६--चंदन को चौकी चारु पड़ी
सोता था सब गुन जटा हुआ।
चौके की चमक अधर बिहँसन
मानो एक दाडिम फटा हुआ।
ऐसे में ग्रहन समै सीतल इक
ख्याल बड़ा अटपटा हुआ।
भूतल ते नभ नभ ते अवनी,
अग उछलै नट का बटा हुआ।

इनको कविता को भाषा कवि-कल्पित स्वतंत्र भाषा है। उसमें किसी भाषा के नियम की रक्षा नहीं को गयो है । सौन्दर्य के लिये हमारे यहां काम उपमान बनता है, परन्तु इन्हों ने यूसुफ को उपनाम बनाया यह फ़ारसी का अनुकरण है। इसी प्रकार की काव्य-नियम-सम्बन्धी अनेक अवहेलनायें इनको रचना में पायी जाती हैं । परन्तु यह अवश्य है कि ये इस विचित्रता के पहले उद्भावक हैं।

बोधा प्रेमी जीव थे: कहा जाता है प्रेम अन्धा होता है (It is Birl) प्रेम क्यों अन्धा होता है ? इसलिये कि वह अपने रंग में मस्त होकर केवल अपने प्रेम पात्र को देखता है. और किसी को नहीं, संसार को भी नहीं । इसीलिये वह अन्धा है। जब किसी का प्रेम वास्तविक रूप से हृदय में जाग्रत हो जाता है. उस समय न तो हम उसके गुण दोष को देखते हैं न उसके व्यवहार को परवा करते हैं, न उसकी कठोरता को कठोरता मानते हैं,न उसकी कटुता को कटुता समझते हैं,और न उसकी पशुता को पशता । प्रेमोन्माद में न तो हम लोक मर्यादा का ध्यान करते हैं, न शिष्टता का, न कुल परम्परा का. न इसबात का कि हमको संसार क्या कहता है यदि यह अंधापन नहीं है तो क्या है ? यदि यह प्रेम ईश्वरोन्मुख