पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४४८

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सुभान के अभाव से संसार को अन्धकारमय देखते थे ओर वही उन को स्वर्गीय विभूति थी तो लोक परलोक से उनका सम्बन्ध ही क्या था? देखिये, वे प्रेम के कंटकाकीर्ण मार्ग का चित्रण किस प्रकार करते हैं :—

१— अति खीन मृनाल के तारहुँ ते
तेहि ऊपर पाँव दै आवनी है।
सुई बेह हूं बेधि सकी न तहाँ
परतीति को टाँडो लदावनो है।
कवि बोधा अनी घनी नेजहुँ की
चढ़ि तापै न चित्त डगावनो है।
यह प्रेम को पंथ करार महा
तरवार की धार पै धावनो है।
२— लोक की लाज औ सोक प्रलोक को
वारिये प्रीति के ऊपर दोऊ।
गांव को गेह को देह को नातो
सनेह में हो तो करै पुनि सोऊ।
बोधा सुनीति निबाह करै
घर ऊपर जाके नहीं सिर होऊ।
लोक की भीति डेरात जो मीत
तो प्रीति के पैंड़े परै जनि कोऊ

कवि के लिये सहृदय होना प्रधान गुण है। जिसका हृदय स्वभावत: द्रवणशील नहीं, जिसके हृदय में भावों का विकास नहीं, उसकी रचना में वह बात नहीं होती जिसको मर्मस्पर्शी कहा जाता है। बोधा की अधिकांश रचनायें ऐसी ही हैं, जिनसे उनका सरस हृदय कवि होना सिद्ध है। उनके दो ग्रन्थ बतलाये जाते हैं। एक का नाम है 'विग्ह वारीश' और