पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४४९

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दूसरे का 'इश्क़नामा'। इन दोनों में उन्होंने प्रेम सम्बन्धी सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है। इश्क़नामा सुभान की प्रशंसा से पूर्ण है। उनके कुछ मानसिक उद्गार ऐसे हैं जिनमें भावुकता को मात्रा अधिक पायी जाती है उनका वाच्यार्थ बहुत साफ़ है। उनको भाषा ललित ब्रजभाषा है यद्यपि उसमें कहीं कहीं खड़ी बोली के प्रयोग भी मिल जाते हैं। उनकी रचना में जितने शब्द आते हैं वे उनके हृदय के रंग में रँगे होते हैं। इसलिये यदि वे कहीं शब्दों को तोड़ मरोड़ देते हैं या अन्य भाषा के शब्दों को लाते हैं तो उनका प्रयोग इस प्रकार करते हैं जिससे वे उनकी शैली के ढंग में ढले मिलते हैं। उनकी कुछ रचनायें देखिये :—

१— एक सुभान के आनन पै
कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को।
कैयो सतक्रतु की पदवी लुटिये
लखिकै मुसकाहट ताको।
सोक जरा गुजरा न जहाँ कवि
बोधा जहाँ उजरा न तहाँ को।
जान मिलै तो जहान मिलै नहिं जान
मिलै तो जहान कहाँ को।
२— बोधा किस सों कहा कहिये
सो विथा सुनि पूरि रहे अरगाइ कै।
याते भलो मुख मौन धरैं उपचार
करैं कहूं औसर पाइ कै।
ऐसो न कोऊ मिल्यो कबहूं
जो कहै कछु रंच दया उर लाइ कै
आवत है मुख लौं बढ़ि के
फिर पोर रहै या सरीर समाइ कै।