पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४५५

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हैं, फारसी और श्रुति कटु शब्द का प्रयोग भी ऐसे ढंग से करते हैं जिससे भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार नहीं पाया जाता। रोचकता उनको रचना में है, साथ ही कटुता भी। कुछ पद्य उनके देखिये:—

१—दया चट्ट ह्वै गई धरमधंसि गयो धरन में।
पुन्न गयो पाताल पाप भो बरन बरन में।
राजा करै न न्याय प्रजा की होत खुआरी
घर घर में बे पीर दुखित भे सब नर नारी।
अब उलटि दान गजपति मँगै सील सँतोष कितै गयो।
बैताल कहै विक्रम सुनो यह कलियुग परगट भयो।
२—ससि बिनु सूनी रैनि ज्ञान बिनु हिरदय सूनो।
कुल सूनो बिनु पुत्र पत्र बिनु तरुवर सूनो।
गज सूनो इक दंत ललित बिनु सायर सूनो।
बिप्र सून बिनु बेद और बन पुहुप बिहूनो
हरि नाम भजन बिनु संत अरुघटा सून बिन दामिनी
बैताल कहै विक्रम सुनो पति बिनु सूनी कामिनी।
३—बुधि बिनु करै बेपार दृष्टि बिनु नाव चलावै।
सुर बिन गावै गीत अर्थ बिनु नाच नचावै।
गुन बिन जाय बिदेस अकल बिन चतुर कहावै।
बल बिन बाँधे जुद्ध हौस बिन हेत जनावै।
अन इच्छा इच्छा करे अन दीठी बातां कहै।
बैताल कहै बिक्रम सुनो यह मूरख की जात है।
४—पग बिन कटे न पन्थ बाहु बिन हटे न दुर्जन।
तप बिन मिलै न राज्य भाग्य विन मिलै न सज्जन।