पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४५८

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४— बेटा बिगरे बाप सों करि तिरियन सों नेहु।
लटापटी होने लगी मोहिँ जुदा करिदेहु।
मोहिं जुदा करि देहु धरी मां माया मेरी।
लैहौं घर अरु द्वार करौं मैं फजिहत तेरी।
कहगिरिधर कविराय सुनो गदहा के लेटा।
समै पज्यो है आय बाप से झगरत, बेटा।

इनको दो सरस रचनायें भी सुनियेः—

५— पानी बाढ़ो नाव में घर में बाढ़ो दाम।
दोनों हाथ उलीचिये यही सयानो काम।
यही सयानो काम राम को सुमिरन कीजै।
परस्वारथ के काज सीस आगे धरि दीजै।
कहगिरिधर कबिराय बड़ेन की याही बानी।
चलिये चाल सुचाल राखिये अपनो पानी।

६— गुन के गाहक सहस नर बिनु गुन लहै न कोय
जैसे कागा कोकिला सब्द सुनै सब कोय
सब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को एक रंग काग सब भये अपावन।
कह गिरिधर कविराय सुनौ हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय सरस नर गाहक गुन के।

इनकी एक शृंगार रसकी रचना भी सुनिये:—

७— सोना लादन पिय गये सूना करि गये देस।
सोना मिला न पिय मिले रूपा ह्वै गये केस।