पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४६

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शौरसेनी, इनको हम दूसरी प्राकृत कह सकते हैं। यदि हम पाली को ही मागधी मान लें तो मागधी के विषय में कुछ लिखना आवश्यक नहीं, क्योंकि पाली को हम पहली प्राकृत कह चुके हैं। किन्तु हमें यह न भूलना चाहिये कि मागधी नाम देशपरक है, मगध प्रान्त की भाषा का नाम ही मागधी हो सकता है, इसलिये यह स्वीकार करना पड़ेगा कि मागधी की उत्पत्ति मगध देश में ही हुई। फिर पाली का नाम मागधी कैसे पड़ा ? इसका उत्तर हम बाद को देंगे, इस समय देखना यह है कि पाली और मागधी में कोई अन्तर है या नहीं ? पालि प्रकाशकार (प्रवेशिका पृ० १३, १४) लिखते हैं

“प्राकृत व्याकरण और संस्कृत के दृश्यकाव्य समूह में मागधी नाम से प्रसिद्ध एक प्राकृत भाषा पाई जाती है, आलोच्य पाली से यह भाषा इतनी अधिक विभिन्न है, कि दोनों की भिन्नता उनके देखते ही प्रकट हो जाती है। पाठकगणों को दोनों मागधी का भेद जानना आवश्यक है, इसलिये उनके विषय में यहां कुछ आलोचना की जाती है। आलोचना की सुविधा के लिये हम यहां पाली को वौद्ध मागधी और दूसरी को प्राकृत मागधी कहेंगे"

“प्राकृत लक्षणकार चण्ड ने प्राकृत मागधी का इतना ही विशेषत्व दिखलाया है, कि इसमें रकार के स्थान पर लकार और सकार के स्थान पर शकार होता है। जैसे-संस्कृत का निर्झर प्राकृत मागधी में निज्झल होगा, इसी प्रकार माष होगा माश और विलास होगा विलाश । परन्तु वौद्धमागधी में इनका रूप यथाक्रम, निज्झर, मास, विनास होगा। प्राकृत मागधी में अकारान्त प्रातिपदिक पुल्लिङ्ग के प्रथमा विभक्ति का एक वचन एकारयुक्त होता है, जैसे-माषः-माशे विलासः -- विलासे निझरः--निज्झले । वौद्ध मागधी में इसका रूप यथाक्रम मासो, विनासो, और निज्झरो होगा।"

"इसी प्रकार के कुछ और उदाहरण देकर पालि प्रकाशकार लिखते हैं (पृ० १६-१७) वौद्ध मागधी और प्राकृत मागधी में परस्पर और अनेक भेद हैं। वाहुल्य भयसे उन सबको पूर्णतया यहां नहीं दिखलाया गया। किन्तु जितना दिखलाया गया, उसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों भाषायें परस्पर कितनी भिन्न हैं"