पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४६०

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और उनमें समाजके मानसिक भावों का अनेक स्थल पर सुन्दर चित्र है, उन्होंने ऋतुओंके परिवर्तन और कृषि आदिके विषयमें कुछ बातें ऐसी कही जिनसे समय-ज्ञान पर उनका अच्छा अधिकार पाया जाता है। कैसी हवा बहने पर कितनी वृष्टि होने की आशा होती है, बर्षाके किन नक्षत्रोंका क्या प्रभाव होता है, और किस नक्षत्र में कृषिकार्य किस प्रकार करने से क्या फल होगा, इन सब बातों को उन्होंने बड़े अनुभव के साथ कहा है। भाषा उनकी ग्रामीण है और उसमें अवधी एवं बैसवाड़ी का मिश्रण पाया जाता है, उसमें ग्रामीणों की बोल चाल और मुहावरों का भी बहुत सुंदर व्यवहार है। उनके कथन में प्रवाह है और भाषा उनकी चलती है। कुछ रचनायें तो उनको ऐसी हैं जो समाज के हृदय का दर्पण हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाओं का युक्त प्रान्त के पूर्वी भाग में अधिक प्रचार है। प्रचार ही नहीं, उसके अनुसार लोग किसानी का काम करने में ही सफलता की आशा करते हैं। मूर्ख किसानों को भी उनकी रचनाओं को पढ़ते और उनके अनुसार कार्य करते देखा जाता है। नीति और लौकिक व्यवहार-सम्बन्धी बातें भी उन्होंने अधिकता से कही हैं। उनकी रचना में विशेषता यह है कि जिस भाषा में उन्होंने रचना की है उस पर उनका पूरा अधिकार ज्ञात होता है। उनकी दृष्टि इस ओर भी पाई जाती है कि उसमें सरलता और स्वाभाविकता की न्यूनता न हो। उनके कुछ पद्य देखिये:—

१— भुइयां खेड़े हर होइ चार।
घर होइ गिहिथिन गऊ दुधार।
रहर दाल जड़हन का भात।
गागल निबुआ औ घिउ तात।
२— सहरस खंड दही जो होइ।
बाँके नैन परोसै जोइ।
कहै घाघ तब सबही झूठा।
उहां छाड़ि इहँवैं बैकूंठा।