पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४६२

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घाघ को रचनायें ग्रामीण भाषा में होने के कारण प्रायः हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने उनकी उपेक्षा की है। परन्तु मैं समझता हूं कि ऐसा करना उचित नहीं। घाघ ने जिस भाषा में अपनी रचना की है वह हिन्दी ही है और वास्तव में बोलचाल की भाषा है। साथ ही उनकी उक्तियां उपयोगिनी हैं। इस लिये उनकी रचना का महत्व कम नहीं। जिस समय व्रजभाषा और अवधी में रचना हो रही थी, उस समय एक ग्रामीण भाषा को रचना लेकर घाघ का सामने आना साहस का काम था उनका यह साहस प्रशंसनीय है, निन्दनीय नहीं। विषय की दृष्टि से भी उनकी रचना कम आदरणीय नहीं। उनकी रचनाओं में वह अनुभव भरा हुआ है, जिसका ज्ञान सब के लिये समान हित कारक है।

इन्हीं नीतिकार कवियों के साथ 'प्रीतम' कवि की चर्चा भी उचित जान पड़ती है। इनका असली नाम मुहिब्ब खां था। ये आगरे के रहने वाले थे। इन्होंने 'खटमलबाईसी' नामक एक छोटे से ग्रंथ की रचना की है, जिसमें बाईस कवित्त हास्य रस के हैं। शायद यही हिन्दी संसार का एक ऐसा कवि है जिसने एक रस पर इतनी थोड़ी रचना करके बहुत कुछ प्रसिद्धि प्राप्त की। हास्य रस की चर्चा होने पर प्रीतम को हिन्दी संसार का प्रत्येक सहृदय कवि प्रीति के साथ स्मरण करता है और उनकी रचनाओं को पढ़कर खिलखिला उठता है। उनकी रचना सरस है और साहित्यिक व्रजभाषा में लिखी गयी है। उसमें प्रतिभा झलकती है और वह चमत्कार दृष्टिगत होता है जो हास्य रस का चित्र सामने खड़ा कर देता है। दो पद्य देखिये:—

१—जगत के कारन करन चारों वेदन के
कमल में बसे वै सुजान ज्ञान धरिकै।
पोषन अवनि दुख सोषन तिलोकन के
समुद में जाय सोये सेस सेज करिकै।
मदन जरायो जो सँहारें दृष्टि ही में सृष्टि
बसे हैं पहार वेऊ भाजि हरिबरिकै।