पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४७६

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४- सोरह सिंगार कै नवेली के सहेलिन हूं
कीन्हीं केलि मन्दिर मैं कलपित केरे हैं ।
कहै पदमाकर सु पास ही गुलाब पास
खासे खस खास खुसबोइन के ढेरे हैं ।
त्यों गुलाब नीरन सों हीरन को हौज भरे
दम्पति मिलाय हित आरती उंजेरे हैं।
चोखी चांदनीन पर चौरस चमेलिन के
चन्दन की चौकी चारू चांदी के चॅंगेरे हैं।
५- चहचही चहल चहूंघा चारु चन्दन की
चन्द्रक चुनिन चौक चौकन चढ़ी है आब ।
कहै पदमाकर फराकत फरसबंद
फहरि फुहारनि की फरस फबी है फाब ।
मोद मद माती मन मोहन मिलै के काज
साजि मन मन्दिर मनोज कैसो महताब ।
गोलगुलगादो गुल गोल में गुलाब गुल
गजक गुलाबी गुल गिंदुक गले गुलाब ।
६- कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलिन कलीन किल कंत है ।
कहै पदमाकर परागन में पौन हूं मैं
पानन में पोक में पलासन पगंत है ।
द्वार में दिसान में दुनी मैं देस देसन मैं
देखौ दीप दीपन मैं दीपति दिगन्त है ।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में
घनन में बागन में बगज्यो बसन्त है ।