पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८१

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ग्वाल कवि जाके लिये सीस पै बुराई लई
लाजहूँ गँवाई ताते फेर लजनो कहा।
या तो रंग काहू के न रंगिये सुजान प्यारे
रंगे तो रँगेई रहे फेर तजनो कहा ।
७-दिया है खुदा ने खुब खुसी करो ग्वाल कबि
खाओ पियो देव लेव यही रह जाना है।
राजा राव उमराव केते बादसाह भये
कहाँ ते कहाँ को गये लाग्यो ना ठिकाना है।
ऐसी जिंदगानी के भरोसे पै गुमान ऐसे
देस देस धूमि घूमि मन बहलाना है।
परवाना आये पर चले ना बहाना
इहां नेकी कर जाना फेर आना है न जाना है।

उनको अन्य मापाओं की भी रचनायें हैं। पर मैं अब उनको उठाना नहीं चाहता। एक एक पद उन भाषाओं का देख लीजिये.

पुरबी भाषा- मोर परवा मिर ऊपर मोहै
         अधर बॅंसुरिया राजत बाय ।
गुजगती भाषा- तुम तो कहौं छो
           छैया मोटो ऊधमी छै
म्हारी मटकी मठानी दुलकावा नो निदान छै ।
पंजाबी भाषा- सादी खुशी एहौ आप .
आरांदी खुशी दे बिच ।
जेही चाहो तेही करी नेही कानं नस्म दै।

गोकुलनाथ महागज काशिगज के दरबार के प्रसिद्ध कवि थे ये कविवर रघुनाथ के पुत्र थे, इनका भाषा-साहित्य का ज्ञान उच्च कोटि का माना