पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८३

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फारसी अथवा अन्य भाषाके शब्द यत्र-तत्र आये हैं, परन्तु उसके अंग भूत बनकर, इस प्रकार नहीं कि जिससे भाषा की शैली में कोई व्याघात अथवा विषमता उत्पन्न हो । इन तीनों सुकवियों की रचनाओं के कुछ उदाहरण नीचे लिखेजाते हैं:-

१-सखिन के स्त्र ति मैं उकुति कल कोकिल की
गरुजनहूं के पुनि लाज के कथान की।
गोकुल अरुन चरनांवुज पै गुंज पुंज
धुनि सी चढ़ति चंचरीक चरचान की।
पीतम के स्रवन समीप ही जुगुति होति
मैन मंत्र तंत्र के बरन गुनगानी की ।
सौतिन के कानन मैं हालाहल है हलति
एरीसुखदानि तौन बजनि बिछुवानि की।
२-पेंच खुले पगरी के उडै फिरै
कुंडल की प्रतिमा मुख दौरी ।
तैमियै लोल लसैं जुलफैं रहैं
एहो न मानति धावति धौरी ।
गोकुल नाथ किये गति आतुर
चातुर की छविंदखत बौरी ।
   ग्वालनि ते कढ़ि जात चल्यो
फहरात कँधा पर पीत पिछोरी।'

गोकुलनाथ

३-बिहँग अगनित भाँति के तहँ रमत बोलत बैन ।
मृगा आवत तासु तर ते लहत अतिसय चैन ।